‘द फाइव मिस्टेक ऑफ नीतीश कुमार’ आखिर कहां चूक गए नीतीश कुमार… जरूर पढ़ें फुल स्टोरी…
पटना।(बन बिहारी)बिहार में आम आदमी पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल के दिल्ली में हुई अप्रत्याशित जीत के चर्चे हो रहे हैं।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर बिहार में सुशासन है।तो फिर दिल्ली में केजरीवाल के तर्ज पर बिहार में नीतीश कुमार अकेले चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते?ऐसे में राजनीतिक महकमे में पक्ष-विपक्ष अपने अपने तरीके से इस मामले में व्यंग्यात्मक तीरंदाजी भी कर रहा है।नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू के द्वारा नीतीश के सुशासन को बिहार मॉडल बताया जाता है। यह बात अलग है कि सुशासन के इस बिहार मॉडल को पंजाब,गुजरात,झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत दिल्ली जैसे राज्यों ने स्वीकार नहीं किया।इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी खड़े करने के बावजूद जदयू को एक भी सीट हासिल नहीं हो सके।अभी हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी जदयू को करारा झटका लगा।वहीं कुछ दिनों पूर्व झारखंड विधानसभा चुनाव में भी पार्टी की परफॉर्मेंस बुरी तरह फ्लॉप हुई थी।ऐसे में सवाल उठना लाजिमी हैं कि सुशासन के लिए प्रसिद्ध नीतीश कुमार को बिहार में अकेले लड़ने क्या साहस क्यों नहीं हो पा रहें। साथ ही खुद को सुशासन को पर्याय मानने वाले जदयू का बिहार के बाहर समीपवर्ती राज्यों में खाता क्यों नहीं खुल रहा है? इन प्रश्नों के जवाब ढूंढने के दौरान विश्लेषण के क्रम में नीतीश कुमार की पांच गलतियां सामने आ जाती है।अगर बिहार के मुख्यमंत्री एवं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने यह पांच गलतियां नहीं की होती।तो संभवत आज बिहार के राजनैतिक क्षितिज में नीतीश कुमार की राजनीती अकेले अपने दम पर अपराजय सदृश हो जाती। प्रस्तुत है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पांच गलतियां-
1:- 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे।भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने पर जदयू को प्रदेश के 40 लोकसभा सीट में सिर्फ दो हासिल हुए, बाकी में करारी हार हुई।इससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आत्मविश्वास डोल गया। 2010 के विधानसभा चुनाव में मिले विशाल बहुमत का अर्थ इनके लिए बदल गया।
2:- 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के संबंध में नीतीश कुमार यह नहीं समझ सके कि चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया था।बिहार के वोटरों को देश का प्रधानमंत्री चुनना था न कि बिहार का मुख्यमंत्री। इस हार से निराश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया तथा बिना किसी राजनीतिक जरूरत के जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।
3:- 2014 के चुनाव परिणामों का सही ढंग से विश्लेषण नहीं समझ सकने के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह लगा कि जनता ने उन्हें अब तक उनके कार्यों से प्रभावित होकर बल्कि वोटों के समीकरण के आधार पर जीत प्रदान की है। इसलिए नीतीश कुमार ‘महाभूल’ कर बैठे और जिस लालू प्रसाद के खिलाफ 15 वर्षों की राजनैतिक लड़ाई के बाद उन्हें सत्ता हासिल हुई थी।उसी के साथ समझौता कर गठबंधन कर लियें।
4:- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह नहीं समझ सके कि लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में मुद्दे अलग-अलग होते हैं।अगर 2014 के बाद नीतीश कुमार लालू प्रसाद से समझौता किए बगैर अकेले चुनाव मैदान में उतरते। तो विधानसभा चुनावों में संभवतः उन्हें भी दिल्ली के अरविंद केजरीवाल की तरह जनता पूरा मौका देती।क्योंकि बिहार की जनता ने 2006 से लेकर 2013 तक के नीतीश कुमार के कार्यकाल को बेहद सराहा है।
5:- 2014 के हार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि उनकी द्वारा बिहार में स्थापित की गई सुशासन की संस्कृति उनके खास सलाहकारों एवं नौकरशाहों के ‘प्रयोग’ तथा ‘हठ’ हो की भेंट चढ़ गई।नतीजा 2015 के बाद की सरकार का परफॉर्मेंस 2005 से 2010 तक के सरकार की तुलना में शून्य प्रतीत होता है।