तेजस्वी ने शिक्षक नियुक्ति पर लिया क्रेडिट, कहा- हमने 17 महीने में इतिहास बनाया, गांधी मैदान में लाखों अभ्यर्थियों को दी नौकरी
पटना। बिहार में शिक्षक नियुक्तियों पर सत्ताधारी दलों और विपक्ष के बीच श्रेय लेने की होड़ लगातार जारी है। राज्य के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक बार फिर से शिक्षकों की नियुक्तियों का श्रेय खुद लेते हुए दावा किया है कि उनकी मेहनत और प्रयासों के कारण ही इतने बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति संभव हो सकी। तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर अपनी उपलब्धियों का जिक्र करते हुए इसे “ऐतिहासिक कदम” कहा और बिहार के युवाओं के लिए एक नई दिशा में बढ़ने का मौका बताया।
गांधी मैदान से नियुक्ति पत्र वितरण: ऐतिहासिक कदम
शुक्रवार को तेजस्वी यादव ने शिक्षक नियुक्तियों को लेकर एक पोस्ट साझा किया, जिसमें उन्होंने गांधी मैदान से 2 नवंबर 2023 को हुए ऐतिहासिक नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि इस दिन एक ही विभाग में एक साथ 1,20,336 नए शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरित किए गए थे। तेजस्वी के अनुसार, यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ था कि एक ही दिन में इतनी बड़ी संख्या में नियुक्तियां की गईं, जो उनके नेतृत्व और सोच का नतीजा है। तेजस्वी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि अगस्त 2022 में जब उनकी पार्टी महागठबंधन सरकार में आई, तब से लेकर अब तक, महज 17 महीनों में 5 लाख से अधिक नियुक्तियां की गईं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि विभिन्न विभागों में लगभग 3 लाख और नौकरियों की प्रक्रिया भी शुरू करवाई जा चुकी है। तेजस्वी ने खुद को बिहार में रोजगार के नए युग की शुरुआत करने वाला बताया। उनके अनुसार, उन्होंने नई सोच और आधुनिक दृष्टिकोण के साथ रोजगार को लेकर बड़े कदम उठाए। उन्होंने इस नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए नए मापदंड स्थापित किए, जिससे लाखों युवाओं को सरकारी नौकरी का अवसर मिला। इसके अतिरिक्त, उन्होंने नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम का आयोजन शुरू कराया, जो पहले बिहार में नहीं होता था। तेजस्वी ने यह भी दावा किया कि उनकी पहल से प्रभावित होकर भारत सरकार ने भी इस तरह के नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम को अपनाना शुरू किया है।
सत्ताधारी दलों और विपक्ष के बीच खींचतान
हालांकि, तेजस्वी यादव के इन दावों पर सत्ताधारी दलों का भी जोरदार जवाब है। जेडीयू और बीजेपी का कहना है कि यह सब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही संभव हुआ। इन दलों के अनुसार, बिना मुख्यमंत्री के कुशल नेतृत्व और उनकी नीतियों के इस स्तर पर नियुक्तियां संभव नहीं थीं। उनका मानना है कि तेजस्वी यादव केवल राजनीतिक श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं और नियुक्तियों के पीछे की मेहनत और योजना में मुख्यमंत्री का योगदान अनदेखा कर रहे हैं।
युवाओं के लिए उम्मीद और विपक्ष का निशाना
तेजस्वी के इन दावों से बिहार के युवाओं में उम्मीद का संचार हुआ है, खासकर उन लोगों में जो लंबे समय से सरकारी नौकरी की प्रतीक्षा कर रहे थे। बिहार के सरकारी विभागों में सालों से खाली पड़े पदों पर इन नियुक्तियों के माध्यम से एक नई शुरुआत हुई है। वहीं, विपक्ष के नेताओं ने तेजस्वी के दावों को सिर्फ राजनीति का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि बिना राज्य सरकार की टीम और मुख्यमंत्री के समर्थन के इस प्रकार के बड़े कदम उठाना संभव नहीं था।
नियुक्तियों के मापदंड और पारदर्शिता पर जोर
तेजस्वी यादव ने अपनी पोस्ट में यह भी जिक्र किया कि उन्होंने नौकरी देने के लिए नए मापदंड तय किए और इस प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती। उनके अनुसार, इस नई प्रक्रिया से नियुक्ति प्रक्रिया में देरी कम हुई और युवाओं को जल्द ही नौकरी पाने का अवसर मिला। उनका मानना है कि सरकार के इस कदम से रोजगार में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी है, जो राज्य के विकास में सहायक सिद्ध होगी।
रोजगार पर राजनीति या हकीकत?
बिहार में शिक्षक नियुक्तियों को लेकर तेजस्वी यादव और सत्ताधारी दलों के बीच चल रही श्रेय लेने की होड़ से यह सवाल उठता है कि क्या यह सब राजनीति का हिस्सा है या वास्तव में बिहार में रोजगार के नए अवसर बढ़े हैं। जहां एक ओर तेजस्वी इसे अपनी सोच और मेहनत का परिणाम मानते हैं, वहीं दूसरी ओर सत्ताधारी दल इसे मुख्यमंत्री की नीति और टीम वर्क का नतीजा बता रहे हैं। हालांकि, यह तो स्पष्ट है कि इतने बड़े पैमाने पर हुई नियुक्तियों ने बिहार के युवाओं के लिए नई उम्मीदें जगाई हैं और रोजगार के क्षेत्र में एक नई दिशा दी है। चाहे इसका श्रेय किसी को भी मिले, लेकिन राज्य के विकास और युवाओं को रोजगार मिलने से बिहार की प्रगति निश्चित रूप से हो रही है।