पटना में गांधी सेतु के नीचे खड़े मजदूर पर गिरा स्लैब, अस्पताल में तोडा दम

पटना। गांधी सेतु एक बार फिर अपनी जर्जर स्थिति को लेकर सुर्खियों में है। इस बार मामला इतना गंभीर रहा कि पुल से गिरे एक स्लैब ने एक निर्दोष मजदूर की जान ले ली। यह घटना जब छपरा निवासी मिथिलेश कुमार मजदूरी के सिलसिले में गांधी सेतु के नीचे खड़े थे।
अचानक गिरी मौत की चट्टान
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मिथिलेश कुमार पुल के नीचे खड़े थे, तभी ऊपर से अचानक एक भारी कंक्रीट स्लैब टूटकर सीधे उनके सिर पर आ गिरा। इस हादसे में मिथिलेश गंभीर रूप से घायल हो गए। वहां मौजूद स्थानीय लोगों ने तुरंत उन्हें नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) पहुंचाया, लेकिन इलाज के दौरान 18 अप्रैल देर रात को उनकी मौत हो गई।
परिवार का आक्रोश, प्रशासन से जांच की मांग
मृतक के बेटे रोहित कुमार ने इस मामले को लेकर आलमगंज थाना में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई है। रोहित का कहना है कि अगर पुल की समय पर मरम्मत की गई होती और जरूरी एहतियात बरती गई होती, तो उनके पिता की जान बचाई जा सकती थी। उन्होंने प्रशासन से निष्पक्ष जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
प्रशासन की तात्कालिक कार्रवाई
घटना के बाद स्थानीय लोगों और मीडिया के दबाव के चलते प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए उस स्थान पर लोहे की जाली लगवाई है, जहां से स्लैब गिरा था। यह कदम भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के उद्देश्य से उठाया गया है, लेकिन यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है या कोई स्थायी नीति भी बनाई जाएगी।
गांधी सेतु की हालत पर फिर उठे सवाल
गांधी सेतु की हालत पिछले कई वर्षों से खराब बनी हुई है। पहले भी इस पुल की मरम्मत, रखरखाव और सुरक्षा को लेकर कई बार रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस और स्थायी समाधान नहीं निकाला गया है। इस पुल से रोजाना हजारों लोग गुजरते हैं और कई मजदूर पुल के नीचे अपना काम करते हैं, ऐसे में सुरक्षा की अनदेखी जानलेवा साबित हो सकती है।
जरूरत है जिम्मेदारी तय करने की
इस हादसे ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि बुनियादी ढांचे की अनदेखी किस हद तक आम लोगों की जान पर भारी पड़ सकती है। प्रशासन को सिर्फ जाली लगवाने या दिखावटी कार्रवाई करने के बजाय, पुल की समग्र स्थिति की समीक्षा कर ठोस कदम उठाने चाहिए। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक ऐसे हादसे दोहराए जाते रहेंगे। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि व्यवस्था की एक बड़ी चूक का प्रतीक है। अब वक्त है कि इस चूक को सुधारा जाए और भविष्य में किसी और के परिवार को इस तरह का दर्द न सहना पड़े।
