September 21, 2024

RJD का NDA सरकार पर अटैक : नकारात्मक और दुष्प्रचार की राजनीति का खामियाजा भुगत रहा बिहार, एनडीए शासनकाल में अपराधों में 3-4 गुना हुई बढोत्तरी

file photo

पटना। भाजपा और जदयू के नकारात्मक और दुष्प्रचार की राजनीति का खमियाजा आज बिहार को भुगतना पड़ रहा है। कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। सुशासनी सरकार और पुलिस हुक्मरानों द्वारा अपराध नियंत्रण पर हर दावे और उच्चस्तरीय समीक्षा के बाद भी राज्य में हत्या, अपहरण, लूट, डकैती, छेड़खानी और बलात्कार की एक श्रृंखला सी बन गई है। उक्त बातें बुधवार को राजद कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन, मृत्युंजय तिवारी, एजाज अहमद एवं सारिका पासवान ने संयुक्त रूप से कहा।
संज्ञेय अपराध के मामले में बिहार चौथे स्थान पर
राजद प्रवक्ताओं ने राजग सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि राज्य की वर्तमान सरकार का बुनियाद हीं दुष्प्रचार, झूठे दावे और नकारात्मक सोच पर टिका हुआ है। जिस वजह से संज्ञेय अपराध के मामले में बिहार आज चौथे स्थान पर पहुंच गया है। वास्तविक स्थिति तो यह है कि राजद शासनकाल की तुलना में एनडीए शासनकाल में सभी प्रकार के अपराधों में तीन से चार गुना की बढोत्तरी हुई है। विशेष कर महिलाओं के खिलाफ अपराध में तो अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
राजद और एनडीए शासनकाल से तुलना
प्रवक्ताओं ने राजद और एनडीए शासनकाल से तुलना करते हुए कहा कि बिहार सरकार और एनसीआरबी के आंकड़ों को हीं आधार मान लिया जाए तो राजद शासनकाल में प्रतिघंटा औसत 11 संज्ञेय अपराध दर्ज होते थे, वहीं एनडीए की सरकार में दर्ज होने वाली संज्ञेय अपराध की संख्या प्रति घंटा औसत 21 यानी राजद शासनकाल से लगभग दुगुना हो गया। बलात्कार की घटनाओं में सौ प्रतिशत बढोत्तरी के साथ प्रतिदिन 4 मामले दर्ज हुये, जबकि राजद शासनकाल में प्रतिदिन का औसत 2 है। राजद शासनकाल में प्रतिदिन अपहरण की औसतन 4 घटनाएं दर्ज हैं, वहीं एनडीए शासनकाल में चौगुना बढोत्तरी के साथ प्रतिदिन औसत 16 घटनायें दर्ज हुईं है। एनडीए शासनकाल में वर्ष 2020 तक फिरौती के लिए 1028 मामले दर्ज किए गए। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि राजद शासनकाल में रिकवरी रेट जहां 97 प्रतिशत था, वहीं एनडीए शासनकाल में वह घटकर 43 प्रतिशत हो गया यानी 57 प्रतिशत अपहृतों की हत्या कर दी गई। वहीं सरकारी आंकड़े के अनुसार, एनडीए शासनकाल में औसतन प्रतिदिन 9 लोगों की हत्या कर दी जाती है। दंगा-फसाद के मामले भी राजद के 22 की तुलना में एनडीए काल में 28 मामले औसतन प्रतिदिन दर्ज हुए हैं।
अभियुक्तों को सजा दिलवाने के मामले में बिहार सबसे निचले पायदान पर
राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि एनडीए शासन की इससे बड़ी अक्षमता और क्या होगी कि अभियुक्तों को सजा दिलवाने के मामले में बिहार सबसे निचले पायदान पर है। एनसीआरबी के अनुसार बिहार का कनविक्सन रेट (2019) 6.1 प्रतिशत है। राजद नेताओं ने आगे कहा कि भाजपा और जदयू के नेता झूठ और दुष्प्रचार को हथियार बना कर सत्ता में आये और फर्जी आंकड़े पेश कर पिछले 16 वर्षों से लोगों को गुमराह करते आ रहे हैं, पर वे तथ्यों और सही आंकड़ों पर बहस नहीं कर सकते। राजद प्रवक्ता ने कहा कि जो लोग नरसंहारों की राजनीति करते हैं वे आज सत्ता में बैठे हैं और इसीलिए नरसंहारों की जांच के लिए राजद सरकार द्वारा बनायी गयी अमीर दास आयोग को एनडीए सरकार द्वारा भंग कर दिया गया। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि स्थिति अब नियंत्रण से बाहर जा चुका है। सरकार का इकबाल अब समाप्त है। इस संवाददाता सम्मेलन में चन्देश्वर प्रसाद सिंह, संजय यादव एवं अन्य राजद नेता उपस्थित थे।
बिहार में इस साल से शुरू हुआ था नरसंहार का दौर
बिहार में नरसंहार के दौर की शुरूआत 1976 में अकौडी (भोजपुर) और 1977 में बेलछी (पटना) से शुरू हुआ था। फिर 1978 में दवांर बिहटा (भोजपुर) में 22 दलितों की हत्या कर दी गई। उसके बाद पिपरा (पटना) में एक बड़े नरसंहार को अंजाम दिया गया। इन नरसंहारों के पीछे वहीं लोग सक्रिय थे जो तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाह रहे थे और आज भी समाजिक न्याय की धारा के प्रबल विरोधी हैं। विरासत में मिली नरसंहारों के दौर को राजद शासनकाल में नियंत्रित किया गया और बिहार में नरसंहारों का दौर रुक गया। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व के दूसरे पांच वर्षों (2001- 2005) के शासनकाल में नरसंहार की एक भी घटना नहीं घटी। सच्चाई यह है कि राबड़ी देवी ने नीतीश कुमार को नरसंहार मुक्त बिहार सौंपा था पर इनके मुख्यमंत्री बनने के कुछ महिने बाद हीं 10 अक्तूबर 2007 में खगड़िया जिला के अलौली में एक बड़ा नरसंहार हुआ, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गई थी।

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