भ्रष्टाचार से टकराने वाले विजय सिन्हा की विदाई पर उठे गंभीर सवाल

पटना। बिहार की राजनीति में बड़ा धमाका! पथ निर्माण मंत्री विजय कुमार सिन्हा को अचानक हटा दिया गया। क्या ये सिर्फ संयोग था या साजिश? क्या उन्होंने ऐसी किसी सच्चाई को छेड़ दिया था, जिससे सत्ता के गलियारों में हलचल मच गई।
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस रखने वाले विजय सिन्हा से क्यों छीना गया मंत्रालय?
4 जून 2023 को अगुवानी घाट-सुल्तानगंज पुल की तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी थीं। गंगा की लहरों में ताश के पत्तों की तरह गिरता पुल… और बिहार की छवि मलबे में दबती चली गई। अब सोचिए, जिस ठेकेदार के घोटालों से बिहार शर्मसार हुआ, उस पर जब विजय कुमार सिन्हा ने शिकंजा कसना शुरू किया, तो तीन दिन के भीतर उनका मंत्रालय ही छीन लिया गया!
एसपी सिंगला पर शिकंजा कसते ही सत्ता का खेल शुरू
पथ निर्माण मंत्री बनते ही विजय सिन्हा ने हर बड़े प्रोजेक्ट की गहराई से जांच शुरू की। एक फाइल, जो वर्षों से किसी न किसी मंत्री की टेबल से वापस लौट जाती थी, उनके सामने लाई गई। फाइल खोली, तो उसमें 5,000 करोड़ से ज्यादा के घोटाले का शक! अब यहां ठहरिए और सोचिए—एक ही कंपनी बार-बार बिहार में ठेके कैसे जीत रही थी? कैसे सत्ता में बैठे लोग इसे संरक्षण दे रहे थे? सबसे बड़ा सवाल—गंगा पर गिरा पुल बनाने की जिम्मेदारी जिस ठेकेदार की थी, उसने अब तक दोबारा काम क्यों नहीं शुरू किया?
भ्रष्टाचार का सिंडिकेट, जो मंत्री भी हटा सकता है
सूत्र बताते हैं कि एसपी सिंगला का नेटवर्क सिर्फ बिहार सरकार तक सीमित नहीं था, बल्कि प्रशासन के सबसे ऊंचे पदों तक फैला हुआ था। ईडी की जांच में आईएएस संजीव हंस का नाम सामने आया, जिनके काले धन को ठिकाने लगाने में इस कंपनी की भूमिका थी। कंपनी के बिहार प्रभारी सुरेश सिंगला जेल गए, लेकिन कंपनी पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। आखिर क्यों? अब विजय सिन्हा इस पूरे खेल की जड़ तक पहुंचने वाले थे। उन्होंने जांच का आदेश दिया, भ्रष्टाचारियों की गर्दन तक हाथ पहुंचा ही था कि तीन दिन के भीतर उन्हें चलता कर दिया गया!
क्या विजय सिन्हा को इसलिए हटाया गया क्योंकि वे झुके नहीं?
बिहार के पथ निर्माण विभाग में बैठे लोग भी मानते हैं कि विजय कुमार सिन्हा पहले ऐसे मंत्री थे, जिन्होंने ठेकेदारों के आगे घुटने नहीं टेके। इससे पहले जो भी मंत्री आया, उसने या तो आंख मूंद ली या फिर हिस्सा लेकर चुप बैठ गया। मगर विजय सिन्हा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। एसपी सिंगला के घोटालों पर पर्दा उठने ही वाला था। विजय सिन्हा ने इस कंपनी की जांच शुरू कराई और अगुवानी घाट पुल हादसे के लिए जिम्मेदारी तय करने की मांग की। वे साफ कह चुके थे कि दोषियों पर कार्रवाई होगी। लेकिन इससे पहले कि वे अंतिम फैसला लेते, उन्हें ही हटा दिया गया!
क्या बिहार सरकार भ्रष्टाचारियों के आगे बेबस है?, अब सवाल उठते हैं :
1. जब विजय सिन्हा ने एसपी सिंगला पर कार्रवाई शुरू की, तभी उनका विभाग क्यों छीना गया?
2. क्या बिहार में ईमानदारी से काम करने वाले मंत्री सुरक्षित नहीं हैं?
3. क्या ठेकेदारों के दबाव में सरकार को अपने ही मंत्री बदलने पड़ते हैं?
4. अगर एसपी सिंगला कंपनी निर्दोष थी, तो अगुवानी घाट पुल क्यों गिरा?
विजय सिन्हा को ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ी!
इस पूरे घटनाक्रम ने साफ कर दिया है कि जो मंत्री भ्रष्टाचारियों से टकराएगा, उसे सत्ता से बाहर कर दिया जाएगा! विजय सिन्हा बिहार के पहले ऐसे पथ निर्माण मंत्री थे, जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ी। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों को ये बर्दाश्त नहीं हुआ। अब सवाल बिहार की जनता के सामने है—क्या एक ईमानदार नेता को इस तरह कुर्बान कर दिया जाना चाहिए?
नियमों से समझौता नहीं, ईमानदारी ही पहचान—विजय सिन्हा से क्यों डरते हैं लोग?
जब सत्ता में बैठे लोग समझौतों की राजनीति कर रहे थे, तब विजय कुमार सिन्हा नियमों की किताब से राजधर्म निभा रहे थे। बिहार विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल को नियमनिष्ठ, अनुशासित और पारदर्शी प्रशासन का उदाहरण बना दिया। उनकी सख्त कार्यशैली ने सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों को अहसास करा दिया कि अब खेल बदलेगा। सदन में उनकी दृढ़ता ऐसी थी कि उन्होंने कभी किसी के दबाव में आकर फैसले नहीं किए, बल्कि सिर्फ और सिर्फ संविधान के अनुरूप निर्णय लिए।
ईमानदारी की राह मुश्किल है, लेकिन…
विजय सिन्हा की लड़ाई सत्ता और ठेकेदारों के गठजोड़ से थी। उन्हें पद से हटाकर ये संकेत दिया गया है कि बिहार में ईमानदारी से चलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। लेकिन सवाल ये है कि क्या जनता ऐसे नेताओं को बचाने के लिए आगे आएगी? अगर अब भी बिहार की जनता नहीं जागी, तो अगला नंबर किसका होगा?
