नई ट्रांसफर-पोस्टिंग नीति के खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी में शिक्षक संगठन, सरकार से तुरंत बदलाव की मांग
पटना। बिहार में हाल ही में लागू हुई सरकारी शिक्षकों की नई ट्रांसफर-पोस्टिंग नीति ने शिक्षकों के बीच असंतोष का माहौल पैदा कर दिया है। राज्य सरकार ने शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता लाने और तबादलों को सुलभ बनाने के लिए सॉफ्टवेयर आधारित ट्रांसफर-पोस्टिंग प्रणाली की शुरुआत की है। हालांकि, यह नीति शिक्षकों के हित में कितनी कारगर होगी, इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है। बिहार के विभिन्न शिक्षक संगठन इस नीति का कड़ा विरोध कर रहे हैं और इसे शिक्षक समुदाय के हितों के खिलाफ मानते हैं। संगठन का कहना है कि अगर सरकार इस नीति में तत्काल बदलाव नहीं करती है, तो वे बड़े आंदोलन की राह पर जाने के लिए मजबूर होंगे।
नई नीति के प्रावधान और प्राथमिकताएँ
इस नीति के तहत गंभीर बीमारी से पीड़ित शिक्षक, मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे शिक्षक, अविवाहित महिलाएँ, और विधवा शिक्षिकाओं को प्राथमिकता दी गई है। इसके अलावा, शिक्षकों को ऑनलाइन आवेदन की सुविधा दी गई है, जिसके माध्यम से वे अपनी पसंद के दस स्थानों का चयन कर सकते हैं। अंतर जिला और अंतर प्रमंडल स्थानांतरण शिक्षा विभाग के अधीन रहेगा, जबकि जिला के अंदर तबादले का अधिकार जिलाधिकारी और कमिश्नर को दिया गया है। लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ प्रावधानों ने शिक्षकों के लिए समस्याएं पैदा की हैं, जिससे शिक्षक संगठन असंतुष्ट नजर आ रहे हैं।
शिक्षकों का असंतोष और प्रमुख मुद्दे
शिक्षकों का कहना है कि उन्हें अपने गृह पंचायत में नियुक्ति नहीं मिल सकेगी, जिससे वे अपने परिवार के पास रहकर कार्य नहीं कर सकेंगे। पुरुष शिक्षकों के लिए अपने गृह अनुमंडल में पोस्टिंग न मिलने का प्रावधान भी नकारात्मक रूप में देखा जा रहा है। संगठन का मानना है कि इस नीति से उनके सामाजिक जीवन और पारिवारिक संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, हर पाँच वर्षों में अनिवार्य रूप से स्कूल बदलने की बाध्यता भी शिक्षकों के लिए कठिनाई का कारण बन सकती है, क्योंकि इससे वे किसी एक स्कूल में लंबे समय तक स्थायीत्व महसूस नहीं कर पाएंगे।
भ्रष्टाचार की आशंका और तबादला प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव
शिक्षक संगठन इस नई नीति में संभावित भ्रष्टाचार की संभावना को लेकर भी चिंतित हैं। उनका कहना है कि यह नीति भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकती है, क्योंकि इसमें अधिकारी अपनी मनमर्जी से शिक्षकों के तबादले कर सकते हैं। वे इस नीति को मनमानी का अवसर मानते हैं, जिसमें बिना किसी ठोस आधार के तबादले किए जा सकते हैं। इस तरह की स्थिति में शिक्षकों को अधिक अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ सकता है और शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
बार-बार तबादलों के शिक्षा व्यवस्था पर संभावित प्रभाव
बार-बार तबादले के कारण शिक्षक समुदाय के अनुसार शिक्षा व्यवस्था में अस्थिरता आ सकती है। जब शिक्षक किसी विद्यालय में लंबे समय तक कार्य करते हैं, तो वे वहाँ के बच्चों, अभिभावकों और समुदाय के साथ घुल-मिल कर एक मजबूत संबंध स्थापित कर पाते हैं। बार-बार के स्थानांतरण से यह संबंध टूट सकता है और बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है। शिक्षक स्थानीय समुदाय से जुड़ नहीं पाएंगे, जिससे शिक्षा व्यवस्था कमजोर हो सकती है।
शिक्षक संगठनों की मांग और आंदोलन की चेतावनी
शिक्षक संगठनों का स्पष्ट कहना है कि सरकार को इस नीति में आवश्यक बदलाव करने चाहिए और शिक्षकों की इच्छा के अनुसार स्थानांतरण प्रक्रिया अपनानी चाहिए। संगठन का मानना है कि शिक्षक की प्राथमिकता और स्थानीय परिस्थितियों का ध्यान रखना आवश्यक है। सरकार को इस नीति पर पुनर्विचार करते हुए एक ऐसी प्रणाली अपनानी चाहिए जो शिक्षकों के लिए सहायक हो और उनके परिवारों पर भी प्रतिकूल प्रभाव न डाले। शिक्षक संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज करती है, तो वे राज्यव्यापी आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे। बिहार सरकार की नई ट्रांसफर-पोस्टिंग नीति से शिक्षकों में असंतोष का माहौल पैदा हुआ है। शिक्षक संगठन इस नीति को शिक्षकों के हितों के विपरीत मानते हैं और इसमें भ्रष्टाचार तथा मनमानी के अवसर देख रहे हैं। वे सरकार से इस नीति में तुरंत सुधार की मांग कर रहे हैं और यह सुनिश्चित करने का आग्रह कर रहे हैं कि शिक्षक भी इस नीति से लाभान्वित हों। इस मुद्दे पर सरकार और शिक्षक संगठनों के बीच संवाद की आवश्यकता है ताकि कोई समुचित समाधान निकल सके। यदि सरकार और शिक्षक संगठन सहमति पर नहीं पहुँचते हैं, तो बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।