PATNA : मसौढ़ी के पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान का खास महत्व, सबसे पहले भगवान श्रीराम ने यहीं किया था तर्पण
पटना, (अजीत)। मोक्ष द्वार के रूप में देश-विदेश में विख्यात बिहार के गया जिलें में पितृ पक्ष के दौरान फल्गु नदी या उसके तट पर पिंडदान का बड़ा महत्व है, लेकिन आदि गंगा कही जाने वाली पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी माना जाता है। पुरखों के जमाने से चली आ रही पिंडदान कि यह प्रथा का इस बार पटना के फुलवारी शरीफ और मसौढ़ी की सीमा पर अवस्थित पुनपुन नदी के तट पर 9 सितम्बर से 25 सितंबर तक चलेगा। हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार वेद और पुराण में भी पिंडदान की बात कही गई है। पुनपुन का घाट प्रथम पिंडदान स्थल है, जहां देश-विदेश के श्रद्धालु अपने पितरों के लिए पूजा एवं तर्पण करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है। अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना लिए लाखों लोग गया आते हैं। पितरों के मोक्ष की कामना लिए गया आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले राजधानी पटना से करीब 13 किलोमीटर दूर पुनपुन पहुंचते हैं, जहां आदि गंगा पुनपुन के तट पर पहला पिंडदान किया जाता है।
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में 15 दिन तक पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।प्राचीन काल से पहले पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने फिर गया के 52 वेदी पर पिंडदान का तर्पण करने की परंपरा भी है। तभी पितृपक्ष में पिंडदान को पूरा तर्पण संपन्न माना जाता है। पितृपक्ष मेले की सारी तैयारियां जोर शोर से जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है। माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण किया था, इसलिए इसे पिंड दान का प्रथम द्वार कहा जाता है। इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था। इस बार 9 सितंबर को पितृपक्ष मेला 2022 की शुरुआत होगी जो 25 सितंबर तक चलेगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है। गयासुर राक्षस को वरदान प्राप्त था कि सर्वप्रथम उसके चरण की पूजा होगी। उसके बाद ही गया में पितरों का पिंडदान होगा। आदि गंगा पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गयाजी में किया गया पिंडदान पितरों को स्वीकार्य होता है।