पटना के लिए दिल्ली की कुर्बानी मुश्किल है चिराग के लिए,खूब समझती है भाजपा-जदयू
पटना।(बन बिहारी)बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान भाजपा तथा जदयू पर प्रेशर पॉलिटिक्स करके अपना भाव बढ़ाने का प्रयत्न तो कर रहे हैं।मगर राजनीतिक अनुमानों के मुताबिक चिराग को बिहार के मौजूदा राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर कुछ ना कुछ कुर्बानी तो देनी पड़ेगी।कहने का तात्पर्य यह है की अगर चिराग बिहार में जदयू के समानांतर राजनीति करने का प्रयास करती हैं।तो उसे राजग से बाहर निकलना पड़ेगा।जिसके लिए चिराग पासवान को दिल्ली में केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपने पिता रामविलास पासवान की मंत्री पद की कुर्सी भी कुर्बान करनी पड़ेगी।जो साधारणतया मुमकिन नहीं दिखता।अगर चिराग राजग में बने रहते हैं तो भाजपा- जदयू के सामने ज्यादा सीटों की बारगेनिंग करने का उनका प्रयास बहुत हद तक सफल नहीं हो सकेगा।दरअसल चिराग पासवान 2015 में महागठबंधन के तर्ज पर 2020 के आसन्न विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सीटों का बंटवारा चाहते हैं।लोजपा के सूत्रों का मानना है कि चिराग पासवान 100-100 भाजपा और जदयू तथा 43 लोजपा के फार्मूले पर पड़े हुए हैं।मगर राजग के अंदर पहले से ही भाजपा तथा जदयू के बीच सीटों की खींचतान जारी है।दरअसल 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने हिस्से 102 सीटें रखी थी।वही 141 सीटें जदयू के पाले में गई थी।ऐसे में इस बार भी जदयू मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी बरकरार रखने के लिए भाजपा के अपेक्षा ज्यादा सीटें लेने पर अड़ा हुआ है।इस बार केंद्र में मजबूत सरकार होने के वजह से 2010 एवं 2020 के भाजपा में काफी अंतर है।पिछली बार भाजपा 102 में मान तो गई थी,मगर इस बार लोजपा को एडजस्ट करने के चक्कर में जदयू के सामने भाजपा को 100 के नीचे जाने के लिए सोचना पड़ सकता है।मगर नरेंद्र मोदी-अमित शाह वाली भाजपा किसी भी सूरत में 100 सीट से नीचे लड़ने नहीं जा रही है।ऐसे में अगर जदयू 120 तथा भाजपा 100 सीट लेती है। तो लोजपा को देने के लिए उनके पास मात्र 23 सीट बचती है।ऐसे में चर्चाओं के मुताबिक लोजपा को महागठबंधन से भी राजद के द्वारा 50-52 सीटों का ऑफर दिया जा रहा है।मगर महागठबंधन में जाने का मतलब चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देना पड़ेगा।जिसके लिए फिलहाल लोजपा तैयार नहीं दिखती है। क्योंकि केंद्र सरकार की कार्यकाल का लगभग 4 वर्ष बचा हुआ है।इसलिए अभी केंद्र की सत्ता से लोजपा अलग होना नहीं चाहेगी।ऐसे में चिराग पासवान के पास भाजपा-जदयू के साथ सम्मानजनक समझौता के अलावा फिलहाल और कोई चारा नही बचता है।कहने वाले कह रहे हैं कि अगर चिराग अड़ते हैं तो ‘दिल्ली’ गवानी पड़ेगी।अगर चिराग दिल्ली बचाए रखना है तो पटना में उन्हें ‘ढीला’ होना पड़ेगा।