पटना हाईकोर्ट को मिले दो नये न्यायाधीश, सीजेआई ने कॉलेजियम प्रणाली के तहत की नियुक्ति की अनुशंसा
पटना। पटना हाईकोर्ट को बुधवार को दो नए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की अनुशंसा प्राप्त हुई है, जिससे राज्य की न्यायिक व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ किया जा सकेगा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने पटना हाईकोर्ट में दो न्यायिक अधिकारियों को जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है। जिन दो अधिकारियों को यह सम्मान मिला है, वे हैं शशि भूषण प्रसाद सिंह और अशोक कुमार पांडेय। इस नियुक्ति प्रक्रिया की शुरुआत पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने 7 मई, 2024 को की थी। उन्होंने अपने दो वरिष्ठतम जजों के साथ परामर्श कर शशि भूषण प्रसाद सिंह और अशोक कुमार पांडेय को जज बनाने के लिए नामित किया था। इसके बाद इस अनुशंसा को राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने अपनी स्वीकृति प्रदान की। इसके उपरांत, मामला सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास भेजा गया, जिसने बुधवार को इन नियुक्तियों को मंजूरी दी। शशि भूषण प्रसाद सिंह वर्तमान में शशि भूषण प्रसाद सिंह पटना हाईकोर्ट में रजिस्ट्रार (विजिलेंस) के पद पर कार्यरत हैं। उनका न्यायिक करियर काफी विस्तृत और सराहनीय रहा है। उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण न्यायिक पदों पर काम किया है और उनकी न्यायिक दक्षता और प्रशासनिक क्षमता के लिए उन्हें सराहा जाता है। रजिस्ट्रार (विजिलेंस) के पद पर रहते हुए उन्होंने हाईकोर्ट में अनुशासन और नियमों के पालन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वही अशोक कुमार पांडेय वर्तमान में बिहार जुडिशियल एकेडमी, पटना के डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। उनका न्यायिक और प्रशासनिक अनुभव व्यापक है। जुडिशियल एकेडमी में डायरेक्टर के रूप में, उन्होंने राज्य के न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके नेतृत्व में न्यायिक अधिकारियों के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं, जिससे राज्य की न्यायिक व्यवस्था में सुधार हुआ है। पटना हाईकोर्ट बिहार की न्यायिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और राज्य के विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई यहीं होती है। हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाना और न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति से न्यायिक कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने में मदद मिलेगी। हाल के दिनों में न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ी है, और इस नियुक्ति से उन मामलों को निपटाने में गति मिलेगी। शशि भूषण प्रसाद सिंह और अशोक कुमार पांडेय के अनुभव और योग्यता को देखते हुए, यह उम्मीद की जा रही है कि वे हाईकोर्ट में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए न्यायिक व्यवस्था को और भी मजबूत करेंगे। दोनों अधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में गहन अनुभव रखते हैं और न्यायिक प्रणाली की बारीकियों को अच्छी तरह से समझते हैं। उनकी नियुक्ति से पटना हाईकोर्ट को न केवल प्रशासनिक स्तर पर बल्कि न्यायिक स्तर पर भी मजबूती मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम प्रणाली न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रणाली के तहत, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठतम जजों का एक समूह न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति पर विचार करता है और अनुशंसा करता है। पटना हाईकोर्ट के इन दो न्यायाधीशों की नियुक्ति भी इसी प्रक्रिया के तहत हुई है। कॉलेजियम प्रणाली का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायिक नियुक्तियाँ पारदर्शी, निष्पक्ष और योग्यता के आधार पर हों। यह प्रणाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शशि भूषण प्रसाद सिंह और अशोक कुमार पांडेय की नियुक्ति में भी इस प्रणाली का पालन किया गया है, जिससे न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहती है। नए जजों की नियुक्ति से पटना हाईकोर्ट को अधिक सुचारू रूप से कार्य करने में मदद मिलेगी। इससे न केवल न्यायिक मामलों का तेजी से निपटारा होगा, बल्कि न्याय प्रक्रिया में लोगों का विश्वास भी मजबूत होगा। पटना हाईकोर्ट की न्यायिक व्यवस्था में सुधार से बिहार के नागरिकों को तेजी से न्याय मिल सकेगा। शशि भूषण प्रसाद सिंह और अशोक कुमार पांडेय के आने से न्यायपालिका में एक नया जोश और ऊर्जा का संचार होगा। उनके अनुभव और क्षमता का लाभ पटना हाईकोर्ट को मिलेगा, और वे न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने में सफल होंगे। शशि भूषण प्रसाद सिंह और अशोक कुमार पांडेय की पटना हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति बिहार की न्यायिक व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न्यायालय की कार्यक्षमता में सुधार होगा और लंबित मामलों के निपटारे में तेजी आएगी। उनकी नियुक्ति से न्यायपालिका में योग्यता और पारदर्शिता को भी बल मिलेगा, जिससे जनता का विश्वास न्यायिक प्रणाली में और अधिक बढ़ेगा।