उचित रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील हो रहा ब्रिटिशकालीन राजकीय अस्पताल
दुल्हिन बाजार (वेद प्रकाश)। प्रखंड मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर चर्चित भरतपुरा गांव में स्थित ब्रिटिशकालीन राजकीय अस्पताल सरकार द्वारा उचित रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील होने को तैयार है। इस अस्पताल की स्थापना वर्ष 1922 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान स्थानीय जमींदार गोपाल नारायण सिंह तथा बंशीधारी सिंह क्षेत्र के लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं को ख्याल में रखते हुये करवाया था। जिसे कुछ वर्षों बाद राजकीय अस्पताल की दर्जा तो मिला वहीं समय बीतने के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों व पदाधिकारियों की उदासीन रवैये के कारण अस्पताल को छह बेडवाला अति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में परिवर्तित कर दिया गया। इस संबंध में संवाददाता ने जांच-पड़ताल की तो ग्रामीणों ने बताया कि लगभग दो एकड़ में फैले यह अस्पताल चिकित्सकों, नर्सों व अन्य कर्मचारियों को रहने की आवासीय सुविधाओं सहित उस समय की आधुनिक उपकरणों से लैस थी। इसके चारदीवारियों के भीतर तरह-तरह के फूलों की क्यारियां लगी थी। इस अस्पताल में शुरक्षाप्रहरी, चिकित्सकों के साथ कर्मचारियो व रोगियों को रहने के लिये अलग-अलग कईं कमरे थे। बंगले के रूप में निर्मित अस्पताल की भवन बहुत आकर्षक थी। फूलों की सजावट से यहां का दृश्य बहुत मनमोहक था। अस्पताल में इलाज के लिये प्रतिदिन आसपास के 50 गांवों से सैंकड़ों मरीज लगभग बीस किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचते थे। कहा तो यहां तक गया कि यह अस्पताल इस इलाके के ग्रामीणों के लिये वरदान था। अस्पताल में प्रतिदिन अच्छे-अच्छे डॉक्टरों की उपलब्धता रहती थी। यह सिलसिला आजादी के बाद 1980 के दशक तक जारी रहा। यहां हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एसएस ठाकुर, हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. जनकदेव बाबू जैसे महान चिकित्सकों ने योगदान दिया। वहीं भरतपुरा गांव निवासी ध्रुपद नारायण सिंह ने बताया कि उस जमाने में इस अस्पताल में रोगी दूर-दराज से इलाज से इलाज करवाने आते थे। इसके स्थापना काल के समय पूरे दुल्हिन बाजार प्रखंड में एक भी अस्पताल नहीं था। यहां एक से बढ़कर एक चिकित्सकों ने योगदान दिया। वर्ष 1985 में कश्मीर से पहुंची डॉ. हेल्मन निशा यहां के रोगियों को अच्छी सेवा प्रदान कर रोगमुक्त करनी शुरू कर दी। जिससे इलाके के रोगी विशेष परिस्थिति में ही इलाज के लिये पटना जाते थे। वहीं भरतपुरा गांव के वृद्ध निवासी चांदधारी सिंह व सुखु यादव ने बताया कि वर्ष 1990 में दो असमाजिक तत्व के लोगों ने वर्चस्व को लेकर अस्पताल परिसर में बमबारी किया। जिससे भयभीत होकर सभी चिकित्सक यहां से पलायन कर गये। तब से इस इलाके के मरीजों व प्रसूतों की परेशानियां बढ़ गयी। वहीं समय बदलने के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों व पदाधिकारियों के उदासीन रवैये के कारण इस अस्पताल की दुर्गति होता गया। देखरेख के अभाव में अस्पताल की भवन जर्जर होकर गिरने लगी। इस राजकीय अस्पताल को छह बेडवाला अति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में परिवर्तित कर दिया गया। आज यह अस्पताल बंदी के कगार पर पहुंच चुकी है। अभी यहां मात्र दो कमरे बचे हैं जिसमे रोगियों की इलाज की जाती है। मौजूदा समय में रोगी कल्याण विभाग की ओर से देखभाल के लिये चपरासी सह गार्ड के रूप में नियुक्त दरोगा राय ने बताया कि यहां रोगियों को इलाज करने के लिये सप्ताह के प्रत्येक बुधवार को डॉ. आनन्द कुमार आते हैं वहीं एक एएनएम नीलम देवी इस अस्पताल में नियुक्त हैं जो प्रतिदिन यहां आती हैं। इस अस्पताल के संस्थापक रहे भरतपुरा जमींदार घराने की तीसरी पीढ़ी के उत्तराधिकारी शिवेंद्रधारी स्ािंह व पूर्व स्थानीय मुखिया दयानंद शर्मा ने बताया कि हमलोग स्थानीय सांसद सह केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रामकृपाल यादव के साथ विभागिय सचिव व मुख्य सचिव के पास भी इसके जीर्णोद्वार व कायाकल्प के लिये गुहार लगा चुके हैं लेकिन इस दिशा में अबतक कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हो सकी। उन सभी ने इस अस्पताल को रेफरल अस्पताल का दर्जा देकर इसकी जीर्णोद्धार कराने की मांग राज्य सरकार से किया