परंपरा: मनेर में दुर्गा पूजा में मुस्लिम तो मोहर्रम में हिंदु करते हैं अगुवाई
मनेर से तनवीर खान की रिपोर्ट: मनेर का लड्डू की मिठास जिस तरह से देश – दुनिया में मशहूर है, इसी तरह यहां के हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा जंग-ए-आज़ादी चरम पर थी। स्वतंत्र भारत की चाहत सभी के दिल में थी सब अपने अपने स्तर से अंग्रेजी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। अंग्रेजी हुकूमत की फुट डालो-राज करो नीति ने हिन्दुस्तानियों को तितर-बितर कर रखा था लेकिन फिर भी गुलामी की जंजीरों के ख़िलाफ़ सब लामबंद हो रहे थे। साम्राज्यवादी ताकतों को एकजुटता से ही हराया जा सकता है इस बात का एहसास सभी को होने लगा था। मनेर में भी 70 वर्ष पूर्व कुछ ऐसा हुआ था।
राजधानी पटना से महज़ 25 किलोमीटर पश्चिम बसे गाँव मनेर में जहां हिंदु-मुस्लिम एक साथ रहते थे। अंग्रेज़ों ने वहां उनके बीच दरार डालने की कोशिश की। इस बार मोहर्रम (यौम ए आशूरा) और दशहरा (विजयदशमी) लगभग एक ही दिन था। लोगों में विश्वास की कमी थीं और कुछ भी अनहोनी होने की पूरी सम्भावना। चारों तरफ अविश्वास का माहौल था, मुस्लिम और हिंदुओं में दरार डालने की बिसात अंग्रेजी हुक़ूमत बिछा चुकी थीं लेकिन इस माहौल में भी दो लोगों की समझ-बूझ ने इस योजना को नाकामयाब कर दिया और एक नया इतिहास बनाया जो आज तक क़ायम है। इस परम्परा को बख़ूबी निभाते आ रहे हैं और इसे अपना फ़र्ज़ समझते हैं। अंग्रेज़ों की रची गई साज़िश को धराशाही करने के लिए 1946 में तत्कालीन ज़मींदार बाबू शीतल सिंह और माननीय मजिस्ट्रेट खान बहादुर कमरूद्दीन हुसैन खान ने एक नायाब तरीका निकाला। क़ौमी एकता की मिसाल कायम करने के लिए दोनों ने एक साथ मुहर्रम का ताज़िया और बड़ी दुर्गा की मूर्ति निकालने का फैसला लिया और साथ ही ये निर्णय लिया गया कि दोनों कमेटी में एक-दूसरे कौम की भागीदारी अनिवार्य होगी।उस साल दुर्गा पूजा के संरक्षक के तौर पर खान बहादुर कमरूद्दीन हुसैन खान को सर्वसम्मति से मनोनीत किया गया। दोनों कौम के लोगों ने इनदोनों के नेतृत्व में एक साथ पर्व मनाया। यूँ तो मुहर्रम ग़मो हिज्र का महीना है लेकिन उस साल लोगों ने इसे ख़ुशी के तौर पर मनाया और समाज को तोड़ने वाले असली रावण को ख़त्म कर एक नई मिसाल क़ायम की, जो आज़तक क़ायम है। देश आज़ाद हो गया कई लोग पाकिस्तान भी चले गए पर ये रिवाज़ आज भी दोनों परिवारों के तरफ़ से क़ायम है। पिछले 20 वर्ष से कमरूद्दीन हुसैन खान के परपौत्र दुर्गा पूजा समिति के उप संगरक्षक सह मुहर्रम कमेटी के ख़लीफ़ा फ़रीद हुसैन खान उर्फ़ गुड्डू खा बताते हैं कि जो रिवाज़ हमारे पुर्वज ने शुरू किया था, हम कोशिश करते है कि ये क़ायम रहे और आगे की नस्ले भी इसको कायम रखें। दोनों कौमो का एक साथ इस तरह साथ आना समाज को एकजुट रखता है। कमेटी के अध्य्क्ष सह राजद नेता विद्याधर विनोद बताते है कि कई वर्षों से जो परंपरा हमारे पूर्वजों की है हमने उसे क़ायम रखा है। यहां कोई भी असामाजिक तत्वों को एकजुट होकर रोका जाता है और कोई चाहे भी तो हम इसको मिलकर नाकामयाब कर देते है। कमिटी के कोषाध्यक्ष सह भाजपा नेता रवींद्र शौंडिक कहते हैं कि यहां राजनीति से ऊपर उठकर हम क़ौमी एकता को तवज्जो देते हैं। मनेर सूफ़ियों की धरती है, हम आपसी मेल मिलाप में यकीन रखते हैं और कोई भी इस एकता को भंग नहीं कर सकता, इस एकता को जिसने भी भंग करने की कोशिश की हम सब इसका मिलकर विरोध करेंगे।