पहाड़ी जनजाति की बेटियों में पढ़ने की ललक ने अभिभावकों का बढ़ाया हौसला
एक हाथ में कलम, दूसरे में हथौड़ा, ये हैं श्रमजीवी बेटियां
तिलौथू (रोहतास)/केवल कुमार। मेहनत और मेधा का ऐसा समन्वय अन्यत्र दुर्लभ है। हकीकत में ये श्रमजीवी बेटियां हैं। वैसे पहाड़ी गांवों की हैं। जहां अब तक विकास की किरण नहीं पहुंच सकी है। इसमें सबसे गंभीर बात तो संवाददाता को यह मिली कि इस गांवों में स्कूल-अस्पताल कागजी हैं। लड़कियों की हसरत लड़कों जैसे पढ़ाई करने की है। नजदीकी स्कूल पहाड़ी गांवों से दस-पंद्रह किलोमीटर दूर है। जहां जिद कर लड़कियों ने उस स्थान पर बसे स्कूल में नामांकन करा ली। पढऩे लगीं तो लड़कों की कान काटने लगी, फिर भी परिजनों को यह कार्य रास नहीं आया। दरअसल, वे बेटियां पत्थर तोडकरÞ घर के लिये रोटियां भी जुटाती हैं। परिजन उन्हें पुरानी लीक पर हांकने लगे तो लड़कियों ने विकल्प दिया। दिन में पढ़ेंगी और सुबह-शाम पत्थर तोड़ेंगी। यह उपाय चल निकला। अब परिजन संतुष्ट हैं और बेटियां भी खुश। अपनी कमाई से वे पढ़ाई कर ते घर के चूल्हे सुलगाने में मदद भी करने लगी। यह मेहनतकश बेटियों की कहानी है रोहतास जिले के नक्सल प्रभावित व कैमूर पहाड़ी पर बसे नौहट्टा प्रखंड के बौलिया, चुटिया, चुन्हट्टा तारडीह, कौड़ीयारी, हरैया सहित दर्जनों गांवों की। जहां बेटियों की शिक्षा को कोई मायने नहीं थी। कामकाज ही उनकी नीयति बन चुकी थी। गरीबी का दंश झेल रहे आदिवासी समुदाय की ये बच्चियां गिट्टी तोड़कर जीविकोपार्जन करती हैं। वहीं सरकार द्वारा चलाई जा रही तमाम विकास योजनाओं के दावे इन गांवों में ध्वस्त हैं। विद्यालय खुले भी सिर्फ कागजों पर। शिक्षकों की तैनाती के बाद भी वे विद्यालय नहीं आते हैं। कुछ वर्ष पूर्व बेटियों ने अपनी तरक्की की राह स्वयं चुनी। अन्य बेटियों की तरह शिक्षा का हथियार बनाया। शिक्षा पाना उनके लिए इतनी आसान नहीं थी। कम से कम 10-15 किलोमीटर दुर्गम व पहाड़ी रास्ते से मैदानी भागों में स्थित विद्यालय में जाना ही एकमात्र विकल्प बना था। रास्ता सुनसान होने के कारण परिजन सुरक्षा के दृष्टिकोण से स्कूल जाने की अनुमति नहीं दे रहे थे। तब बेटियों ने भरोसा दिलाया। कहा कि वे मां-बाप की भावनाओं का कद्र कर हर हाल में शिक्षा ग्रहण करेंगी। पूर्व की तरह घर चलाने के लिए गिट्टी भी तोड़ेंगी। अभिभावकों के राजी होने के बाद अब इन गांवों की बेटियां सुबह पांच बजे बजे से आठ बजे तक गिट्टी तोड़ती है। इसके बाद तत्काल स्कूल के लिए निकल जाती हैं। पांच बजे तक विद्यालय से घर आकर फिर गिट्टी तोड़ने के काम में लग जाती हैं। इस संबंध में उच्च विद्यालय बौलिया में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली चुन्हट्टा गांव की कमला, सोनाली ने बताया कि विद्यालय का समय समाप्त होने पर वे सभी अपने परिजनों के साथ पहाड़ी पर पत्थर तोड़ कर गिट्टी बनाती हैं। जिससे इनके परिवार का भरण-पोषण होता है वहीं दसवीं में पढ़ने वाली कौशल्या ने बताया कि पूरा परिवार मिलकर मेहनत करते हैं तो दिन भर में डेढ़ से दो सौ रुपये की गिट्टी तोड़ पाती हूं। इसलिए गिट्टी तोड़नी मजबूरी बन चुकी है। गरीब की बेटी हूं पत्थर नहीं तोड़ूंगी तो भोजन कैसे मिलेगी। आगे इन बच्चियों ने बताया कि अब स्नातक तक की पढ़ाई करेंगी व सरकारी नौकरी पा गांव की दशा व दिशा भी बदलेंगी। इस संबंध में कौड़ियारी के राजेंद्र उरांव ने बताया कि बेटियों के पढ़ने की ललक ने हमारी सोच बदल दी है। बेटियां घर व बाहर का काम निबटाकर 12 से 15 किलोमीटर पैदल स्कूल में जाती हैं। पढ़ाई में भी अव्वल हैं। इन्हीं के कारण अब बेटों से अधिक बेटियां पढ़ रही हैं। पहले बेटी जब बड़ी हो जाती थी तो घर से निकलने पर पाबंदी लगी रहती थी। अब बेटियों ने हम मां-बाप को भी आश्वस्त कर दिया कि उनका सर झुकेगा नहीं। नौहट्टा में अब कॉलेज भी खुल गये हैं आगे चलकर बेटियां बीए तक पढ़ेंगी ताकि वे अफसर बनकर गांव का उद्धार कर सकें। इस संबंध में नौहट्टा प्रखंड के बीडीओ बैजू मिश्रा ने बताया कि पहाड़ी गावों में डीएम के नेतृत्व में विकास योजनाओं की समीक्षा की गयी है। वृद्धावस्था पेंशन, मनरेगा जॉब कार्ड सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं को सभी जरूरतमंदों को उपलब्ध कराया जायेंगे। इसके अलावे आंगनबाड़ी केंद्रों व विद्यालयों के नियमित संचालन को लेकर अभियान चलाये जायेंगे। वैसे लडकियों को चिह्नित किया जायेगा जो आर्थिक स्थिति के अभाव में गिट्टी तोड़ने के कार्य में लिप्त हैं।