‘मृदा स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव’ पर कार्यशाला का आयोजन, कृषि सचिव अग्रवाल ने किया उद्घाटन
- जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या : संजय अग्रवाल
पटना(अजीत)। बिहार के कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने सोमवार को ‘मृदा स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभावः मुद्दे और सुधार रणनीतियाँ’ विषय पर बामेती, पटना में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन किया। अग्रवाल ने कहा कि वैश्विक समुदाय द्वारा मृदा स्वास्थ्य को सतत् विकास के महत्वपूर्ण घटक के रूप में देखा जा रहा है। वर्तमान में कृषि विभाग द्वारा मृदा स्वास्थ्य को अक्षुण्ण रखने तथा सतत् विकास के परिकल्पना के साथ समायोजित करने हेतु किसानों को मिट्टी जाँच के आधार पर अनुशंसित उर्वरक के प्रयोग हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण, जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाने हेतु ढ़ैंचा व मूंग बीज का वितरण, पोषक तत्वों के चक्रण हेतु फसल विविधीकरण को बढ़ावा, जीरो टिलेज, संरक्षित खेती एवं जलवायु अनुकूल खेती जैसे आधुनिक तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि आज समय की माँग है कि मृदा स्वास्थ्य को अक्षुण्ण रखने हेतु सभी हितधारकों यथा कृषक, कृषि वैज्ञानिक, नीति-निर्माता, उपभोक्ता इत्यादि को एक सूत्र में पिरोया जाये, ताकि इसे एक लोक नीति के रूप में सभी हितधारकों द्वारा स्वीकार किया जा सके तथा उनकी एक समान सहभागिता एवं सहमति सुनिश्चित हो सके। इसलिए आज के इस एक दिवसीय कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य किसानों एवं वैज्ञानिकों के संवाद द्वारा मृदा स्वास्थ्य के वास्तविक पहलुओं पर चर्चा किया गया, जिससे वर्तमान व भविष्य के हित में मृदा स्वास्थ्य पर सशक्त लोक नीति का निर्माण किया जा सके।
सचिव, कृषि विभाग ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन आज एक वैश्विक समस्या के रूप में उभर रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी के जलधारण करने की क्षमता में कमी आ रही है तथा मृदा में उपलब्ध जैविक कार्बन एवं सूक्ष्म जीवों के संतुलन प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि मृदा में यूरिया व अन्य नाइट्रोजनयुक्त रासायनिक खादों के असंतुलित उपयोग से वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड जैसे गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन का खतरा बढ़ रहा है। फसल उत्पादकता को बढ़ाने एवं श्रम लागत को कम करने में कृषि यांत्रिकरण की अहम भूमिका रही है परन्तु शोध में पाये जाने वाले परिणाम के अनुसार कुछ कृषि यंत्र मृदा के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव यथा मिट्टी की संरचना में परिवर्तन तथा मृदा संघनन इत्यादि को दर्शाते हैं, इसलिए कृषि यंत्रों के उपयोग पर युक्तिसंगत विचार किया जाना आवश्यक है। वही इस बैठक में अपर निदेशक धनंजयपति त्रिपाठी, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. एच.एस. सिद्धू, ICRISAT के वैज्ञानिक डॉ. एम.एल. जाट, बीसा, जबलपुर के वैज्ञानिक डॉ. रवि गोपाल सिंह सहित अन्य पदाधिकारी एवं विशेषज्ञ तथा किसानगण उपस्थित थे।