मुश्किल होगी तेजस्वी की राह,नीतीश पर भी संकट,वोटों के ध्रुवीकरण में जुटी भाजपा…
पटना।बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में अपने सहयोगी जदयू के तुलना में अधिक सीटें लाने के बाद बिहार भाजपा के हौसले काफी मजबूत हो गए हैं।बिहार भाजपा ने इस विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश के अपने कई बड़े नेताओं को राज्य की राजनीति से थोड़ी छुट्टी दे दी है। बिहार भाजपा के पर्याय समझे जाने वाले सुशील मोदी को राज्यसभा के रास्ते दिल्ली भेजा जा रहा है।वहीं नेता प्रतिपक्ष रह चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रेम कुमार तथा पूर्व पथ निर्माण मंत्री तथा बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नंदकिशोर यादव को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शंट कर दिया गया है।भाजपा की रणनीति साफ तौर पर प्रतीत हो रही है।बिहार में भाजपा अब अपने पैरों पर खड़े होने के जुगत में है।1998 के बाद से भाजपा बिहार में तत्कालीन समता पार्टी तथा जनता दल तदुपरांत जदयू के सहयोग से सत्ता में आती रही है।2015 के विधानसभा चुनाव में जब जदयू ने राजद-कांग्रेस का दामन थाम लिया था।तब भाजपा को तमाम राजनीतिक कवायदों के बावजूद मुंह की खानी पड़ी थी।मगर अब भाजपा पहले से ज्यादा सजग हो गई है।बिहार की वर्तमान नीतीश सरकार में भाजपा की स्थिति जदयू के तुलना में बेहद मजबूत है।ऐसे में उत्तर प्रदेश के तर्ज पर बिहार में भी भाजपा हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के बदौलत अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुट गई है।पार्टी में पहले से कुछ फायर ब्रांड नेता मौजूद हैं,पार्टी और कुछ नया फायर ब्रांड नेता उतारने जा रहे है।निर्णय साफ है, बिहार में भाजपा को अब अपने पैरों पर खड़ा होना है।भाजपा उत्तर प्रदेश के तर्ज पर बिहार में इतनी सशक्त होना चाहती हैं की भविष्य में अकेले सरकार बना सके।ऐसे में भाजपा की नजर राजद के समीकरण को छोड़कर सभी वोट बैंक को पर एक समान है। भाजपा का इरादा है कि उत्तर प्रदेश के तर्ज पर बिहार में भी भाजपा वोटों के लामबंदी हो जाए।भाजपा नेताओं की रणनीति है कि बिहार में सवर्ण समेत वैश्य,अति पिछड़ी जातियां, दलित वर्ग भाजपा के ध्वजा के नीचे आ सकें।जिससे प्रदेश की राजनीति में वोटों का ऐसा ध्रुवीकरण उत्पन्न होगा की आगामी चुनाव में भाजपा को हरा पाना टेढ़ी खीर हो जाए।प्रदेश की राजनीति में जैसे-जैसे भाजपा के हौसले बुलंद हो रहे हैं।जदयू तथा राजद दोनों के लिए खतरे की घंटी बजनी आरंभ हो गई है।उत्तर प्रदेश के तौर पर भाजपा अगर बिहार में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण करने में कामयाब हो गई।तो सबसे अधिक नुकसान भाजपा के सहयोगी दल तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पार्टी जदयू तथा मुख्य विपक्षी दल राजद को होगा।फिलहाल नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की सरकार बन चुकी है।राजद तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्ष में बैठा हुआ है।मगर बिहार की मौजूदा राजनीति अपने वोट बैंक के सुदृढ़ीकरण के क्रम में भाजपा बनाम अन्य पार्टियां के रूप में परिवर्तित होने वाली है।भाजपा के रणनीतियां अभी से ही प्रदेश के अन्य बड़े-छोटे दलों को खटक रही है।दरअसल कोई भी बड़ी या छोटी क्षेत्रीय पार्टियां यह नहीं चाहती की उसके वोट बैंक का ध्रुवीकरण अन्यत्र किसी मोर्चे में हो जाए।बिहार में राजनीति का वोट कब किस करवट बैठेगा।यह बता पाना मुश्किल है।मगर बिहार विधानसभा में जदयू के अपेक्षा अधिक मजबूत हो जाने के बाद भाजपा प्रदेश में अपनी जड़ों को मजबूत करने में जुट गई है।