अश्लेषा नक्षत्र व शोभन योग के युग्म संयोग में 19 को मनेगी ‘माघी पूर्णिमा’

* होगा कल्पवास, निरोग काया व सात्विकता का मिलेगा वरदान

पटना। सनातन धर्मावलंबीयों के पवित्र मास माघ की पूर्णिमा आगामी 19 फरवरी मंगलवार को अश्लेषा नक्षत्र व शोभन योग के युग्म संयोग में मनाई जाएगी। इसके साथ ही विगत एक माह से चला आ रहा कल्पवास भी समाप्त हो जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माघ मास में देवता पृथ्वी पर निवास करते है तथा तीर्थराज प्रयाग के संगम में स्नान कर अपने इष्ट का जप-तप करते है। कल्पवास में श्रद्धालु गंगा, संगम आदि पवित्र नदियों के तट पर पुरे एक मास निवास कर नित्य आस्था की डुबकी लगाकर दान-पुण्य करते हैं। कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि हिन्दू धर्म में माघ मास की विशेष महत्ता है। इस मास को भगवान भास्कर और जग पालनकर्ता श्रीहरि विष्णु का माह बताया गया है। देवता भी इस मास में स्वर्ग लोक से पृथ्वीलोक पर निवास करते है। उन्होंने बताया कि इस मास के पूर्णिमा को शीतल जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति पापमुक्त होकर स्वर्ग लोक को प्राप्त करता हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है इसीलिए इस पावन दिवस पर गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति करा सकता है। माघ पूर्णिमा के दिन गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पाप मिट जातें हैं। हिन्दू पंचांग के मुताबिक ग्यारहवें महीने यानी माघ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व है। इस दिन को पुण्य योग भी कहा जाता है। पूर्णिमा को भगवान विष्णु की पूजा करने से सौभाग्य व पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। मत्स्य पुराण के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा में जो श्रद्धालु ब्राह्मण को दान करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है। दान में भोज्य पदार्थ, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है।
स्नान-दान के साथ संपन्न होगा कल्पवास
ज्योतिषी पंडित झा ने कहा कि माघ मास में श्रद्धालु गंगा-यमुना के संगम तट पर तीस दिनों का (पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक) कल्पवास करते है। साथ ही जरूरतमंदों को सर्दी से बचने योग्य वस्तुओं, जैसे- ऊनी वस्त्र, कंबल और आग तापने के लिए लकडी आदि का दान कर अनंत पुण्य फल की प्राप्ति तथा जीवन को सार्थक बनाते है। इस पुरे मास में कई ऐसे तिथियां थी जिसमे गंगा या संगम स्नान से हजारों अश्वमेघ और सैकड़ों वाजपेयी यज्ञ के साथ-साथ सहस्त्र ग्रहण स्नान का फल मिलता है। कल्पवास करने वाले श्रद्धालुओं में इस पवन मौके का लाभ उठाया। इसी माह में दो शाही स्नान का भी संयोग रहा है। माघी पूर्णिमा के बाद कल्पवास भी पूरा हो जाएगा। पंडित झा ने निर्णय सिंधु का हवाला देते हुए बताया कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है।
निरोग काया व सात्विकता का मिलेगा वरदान
पटना के प्रमुख ज्योतिष विद्वान पंडिता राकेश झा शास्त्री ने बताया कि माघ पूर्णिमा के दिन महाकुंभ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन चन्द्रमा भी अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होते हैं तथा पूर्ण चन्द्रमा अमृत वर्षा करते हैं जिसका अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों पर पड़ते हैं। इसीलिए इनमें आरोग्यदायक गुण उत्पन्न होते हैं। माघ पूर्णिमा में स्नान-दान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है। मकर राशि में सूर्य का प्रवेश और कर्क राशि में चंद्रमा का प्रवेश होने से माघी पूर्णिमा को पुण्य दायक योग बनता है तथा सभी तीर्थों के देवता पूरे माह प्रयाग तथा अन्य तीर्थों में विद्यमान रहने से अंतिम दिन को जप-तप व संयम द्वारा सात्विकता को प्राप्त करते है। संगम में माघ पूर्णिमा का स्नान एक प्रमुख स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है जो पाप का शमन करता है।
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