November 22, 2024

एमएलसी सुनील सिंह की विधान परिषद की सदस्यता रद्द, रिपोर्ट के बाद की गई घोषणा

पटना। बिहार विधान परिषद में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एमएलसी सुनील सिंह की सदस्यता शुक्रवार को समाप्त कर दी गई। यह कदम उन पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी के आरोप के बाद उठाया गया। समिति की रिपोर्ट के आधार पर सदन में इस निर्णय की घोषणा की गई। समिति ने पाया कि डॉ. सुनील कुमार सिंह ने सदन के सदस्य बने रहने की पात्रता खो दी है। शुक्रवार को ही सुनील सिंह को बिस्कोमान अध्यक्ष के पद से भी हटा दिया गया था। इसका कारण उनकी अनुपस्थिति थी, क्योंकि वह समिति की बैठकों में बुलाने के बावजूद उपस्थित नहीं होते थे। सुनील सिंह राजद के एक प्रमुख नेता हैं और लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाते हैं। जब से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन को छोड़कर एनडीए के साथ मिलकर सरकार का गठन किया है, तब से सुनील सिंह कई मुद्दों पर नीतीश कुमार के खिलाफ हमलावर रहे हैं। अक्सर विधान परिषद में उनकी और सरकार के बीच नोकझोंक देखने को मिलती थी। बीते दिनों सुनील सिंह ने विधान परिषद में सीएम नीतीश कुमार की नकल उतारी थी, जिसके बाद जदयू के कई एमएलसी ने इसकी शिकायत की। इस पर समिति ने जांच की और अपनी रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की। रिपोर्ट आने के बाद उनकी सदस्यता को समाप्त करने का निर्णय लिया गया। इस घटना से पहले भी सुनील सिंह कई बार विवादों में रहे हैं। राजद के एक बड़े नेता होने के नाते, उनका सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ बोलना आम बात है। लेकिन इस बार उनकी टिप्पणी को समिति ने गंभीरता से लिया और कड़ी कार्रवाई की गई। विधान परिषद के इस निर्णय के बाद राजद में भी हलचल मची हुई है। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इस निर्णय को लेकर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। सुनील सिंह के करीबी लोगों का मानना है कि यह कार्रवाई राजनीतिक प्रतिशोध के तहत की गई है। वहीं, जदयू के नेताओं का कहना है कि सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए यह निर्णय आवश्यक था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस घटना से बिहार की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं। राजद और जदयू के बीच का तनाव और बढ़ सकता है। सुनील सिंह की सदस्यता समाप्त होने के बाद उनके समर्थक और विरोधी दोनों ही तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। सुनील सिंह की सदस्यता रद्द होने से बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है। यह घटना दिखाती है कि सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि राजनीतिक नेताओं को अपने शब्दों और कर्मों पर सावधानी बरतनी होगी। आगे देखने वाली बात होगी कि इस निर्णय का बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है और राजद इस मामले में किस तरह से प्रतिक्रिया देता है। सुनील सिंह की भविष्य की राजनीतिक यात्रा भी इस निर्णय के बाद ध्यान में रखनी होगी।

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