November 22, 2024

स्वास्थ्य विभाग के जागरूकता अभियान का असर, बिहार में आयरन की गोलियों की खपत 300 फ़ीसदी बढ़ी

पटना। बिहार में गर्भवती महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) के प्रति अब पहले से काफी अधिक जागरूक हो गई हैं। इस जागरूकता का नतीजा यह हुआ है कि राज्य में आयरन की गोलियों की खपत में 300 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके साथ ही, जटिल प्रसव प्रबंधन की स्थिति में भी पहले की तुलना में काफी सुधार हुआ है। आयरन की गोलियों की खपत में इस बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए गए जागरूकता अभियान हैं। सुरक्षित प्रसव के लिए प्रसव पूर्व सभी प्रकार की आवश्यक जांच और एनीमिया प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। गर्भवती महिलाओं में खून की कमी का खतरा अधिक होता है, जिससे गर्भावस्था के दौरान महिला को कम से कम 180 आयरन की गोलियों का सेवन करना चाहिए। इससे मां और उनके गर्भस्थ शिशु दोनों स्वस्थ रहते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में आयरन की गोलियों का सेवन करने वाली महिलाओं का प्रतिशत बढ़कर 9.3 प्रतिशत हो गया है, जो कि 300.4 फीसदी की वृद्धि है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 63.4 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी अर्थात एनीमिया की समस्या से जूझ रही हैं। वहीं, 6 महीने से 5 साल के बच्चों में 69.5 प्रतिशत एनीमिया के मामले पाए गए हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने महिलाओं और बच्चों में खून की कमी को देखते हुए कई प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम चलाए हैं। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर निशुल्क आयरन की गोलियां उपलब्ध कराई जा रही हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भवती महिलाओं के लिए नियमित रूप से आयरन की गोलियों का सेवन बेहद जरूरी है, ताकि मां और बच्चे दोनों स्वस्थ रहें। स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों के तहत, गर्भवती महिलाओं को एनीमिया के खतरे और इसके रोकथाम के उपायों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही है। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि अब अधिक से अधिक महिलाएं आयरन की गोलियों का सेवन कर रही हैं और एनीमिया की समस्या को कम करने में सहयोग कर रही हैं। इसके अलावा, जटिल प्रसव प्रबंधन में सुधार और सुरक्षित प्रसव के लिए भी स्वास्थ्य विभाग के प्रयासों की सराहना हो रही है। इस प्रकार, बिहार में स्वास्थ्य विभाग के जागरूकता अभियानों के चलते आयरन की गोलियों की खपत में वृद्धि के साथ-साथ एनीमिया प्रबंधन में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। सरकार की यह पहल न सिर्फ महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बना रही है, बल्कि राज्य के समग्र स्वास्थ्य मानकों को भी उन्नत कर रही है।

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