December 23, 2024

बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद भी राज्यसभा के उपसभापति बने रहेंगे जदयू सांसद हरिवंश, जानें पूरा मामला

पटना। भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने के जनता दल यूनाइटेड के फैसले ने न केवल बिहार में राजनीतिक समीकरण को बदल दिया, बल्कि पटना से लेकर दिल्ली तक के सियासी गलियारों में सरगर्मी बढ़ा दी है। इस बीच यह चर्चा हो रही है कि क्या राज्यसभा के उपसभापति और जेडीयू सांसद हरिवंश अपने पद पर बने रहेंगे या इस्तीफा देने जा रहे हैं। वही अब एक जेडीयू नेता बताया की जेडीयू सांसद हरिवंश एक संवैधानिक पद पर हैं और जो लोग इस तरह के पद पर बैठे हैं वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान किसी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं होते हैं। उन्होंने कहा, “उन्हें इस्तीफा क्यों देना चाहिए वही पटना में नीतीश कुमार द्वारा 9 अगस्त को बुलाई गई जेडीयू की बैठक में हरिवंश के शामिल नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर राज्यसभा के उपसभापति के सहयोगी ने कहा की उन्हें बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था। इसलिए वह वहां नहीं गए थे, लेकिन नीतीश कुमार के लिए उनके मन में बहुत सम्मान है।
अपने पद पर बने रहेंगे हरिवेश
हरिवंश को 8 अगस्त, 2018 को राज्यसभा के उपसभापति के रूप में चुना गया था। 14 सितंबर, 2020 को संसद के ऊपरी सदन में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए लौटने के बाद उन्हें राज्यसभा के उपसभापति के रूप में फिर से चुना गया था। जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हरिवंश का पार्टी से गहरा नाता है और उनके संवैधानिक पद पर बने रहने की संभावना है। वही एक जेडीयू नेता ने कह की हरिवंश जी हमारे सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पूरा सम्मान और सम्मान रखते हैं, लेकिन यह भी समझना चाहिए कि राज्यसभा का सभापति एक संवैधानिक पद है और निर्वाचित व्यक्ति छह साल तक इस पद पर रहता है। इसलिए इसका कोई प्रभाव नहीं होना चाहिए। बिहार में राजनीतिक स्थिति बदलने के बावजूद उनके पद पर बने रहने की संभावना है। जानकारी के अनुसार, हरिवंश के नाम का प्रस्ताव भाजपा ने किया था और उन्हें कई दलों के समर्थन से चुना गया था। उन्होंने बताया की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में राज्यसभा के उपसभापति को उनके पद से तभी हटाया जा सकता है जब भाजपा उनके खिलाफ अविश्वास व्यक्त करे।
संवैधानिक होता है उपसभापति का पद
वही राज्यसभा के एक पूर्व महासचिव ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उपसभापति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद संवैधानिक होता है। देश या राज्य या किसी भी राजनीतिक दल की राजनीतिक स्थिति में बदलाव के बावजूद उनके प्रभाव में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा की इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी पार्टी सत्ता में है या विपक्ष में। संवैधानिक पद पर ऐसे लोग सदन के नियम का पालन करने के लिए बाध्य हैं और संविधान उनके लिए सर्वोच्च होना चाहिए। मेरा मानना ​​है कि राज्यसभा के उपसभापति का पद गैर-राजनीतिक है।

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