आर्द्रा नक्षत्र व सिद्धि योग में 3 जुलाई से आरंभ होगी गुप्त नवरात्र
नौका पर होगा माता का आगमन और नरवाहन पर होगी विदाई
आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा 3 जुलाई दिन बुधवार को सिध्दि योग में ग्रीष्म कालीन गुप्त नवरात्र आरंभ होगी। अष्टमी व नवमी एक ही दिन होने से नवरात्र में आठ दिनों की ही पूजा की जायेगी। श्रद्धालु निराहार या फलाहार रह कर माता की आराधना करेंगे। घरो एवं मंदिरो में कलश की स्थापना तथा शक्ति की पूजन होंगी। गुप्त नवरात्र में तंत्र साधना की प्रधानता होती है। इस नवरात्र में माँ कामाख्या की पूजन-अर्चन विशेष तौर पर की जाती है।
कर्मकांड विशेषज्ञ पं० राकेश झा शास्त्री ने शिव पुराण एवं मत्स्य पुराण के हवाला देते हुये बताया कि आषाढ़ मास के देवता इंद्र और महाकाली है। यह मास प्रकृति को अपने गोद में लिये हुए है। इसीलिये इस मास में बारिश की प्रधानता रहती है। ऋतू संधि में अनेक प्रकार की बीमारियों का प्रकोप बढ़ने के कारण इनसे बचाव हेतु आषाढ़ मास में शक्ति पूजन की प्राचीन परम्परा है।
पंडित झा के कहा कि गुप्त नवरात्र का आरंभ एवं समापन पर सिद्धि योग बन रहे है। इस नवरात्र में पूजा का शुरुआत आर्द्रा नक्षत्र में होने से योग और उत्तम हो गया है। इस महा योग में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत कल्याणकारी होगा। नवरात्र में दुर्गा सप्तशती, देवी के विशिष्ट मंत्र का जाप, दुर्गा कवच, दुर्गा शतनाम का पाठ प्रतिदिन करने से रोग-शोक आदि का नाश होता है।
दस महाविद्याओं की होगी साधना
ज्योतिषी पं० झा के अनुसार इस गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है I विशषेतः तांत्रिक क्रियाओ, शक्ति साधनाओं, और महाकाल से जुड़े साधकों के लिये यह नवरात्र विशेष महत्व रखता है। इस दौरान देवी के साधक कड़े विधि-विधान के साथ व्रत और साधना करते है। देवी के सोलह शक्तियों की प्राप्ति के लिये यह पूजन करते है।
देवी पूजन से मिलेगा कष्टकारी ग्रहों से मुक्ति
पंडित झा के कहा कि देवी माँ की पूजन, हवन,वेद पाठ के उच्चारण से कष्टकारी ग्रह शनि, राहु और केतु से पीड़ित श्रद्धालूओं को लाभ होता है। दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति के लिये साधक महाकाली, तारा, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी, छिन्मस्तिका, भैरवी, बगलामुखी, माता कमला, मातंगी देवी की साधना करते है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
गुली मुहूर्त:- प्रातः 10 :11 बजे से 11:54 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त:- दोपहर 11:26 बजे से 12:21 बजे तक