December 22, 2024

फतुहा के त्रिवेणी संगम घाट पर दिखी डॉल्फिन, लोगों की उंगली भीड़, किए जा रहे संरक्षण के प्रयास

पटना। राजधानी पटना से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित फतुहा का त्रिवेणी संगम घाट इन दिनों डॉल्फिन की गतिविधियों के कारण चर्चा में है। गंगा और पुनपुन नदियों के संगम पर बने इस घाट पर बड़ी संख्या में डॉल्फिनों को देखा जा रहा है। ये डॉल्फिन सुबह और शाम के समय नदी में उछल-कूद करती नजर आती हैं, जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण बन गया है। फतुहा के त्रिवेणी घाट पर डॉल्फिनों को देखने के लिए सुबह 8 से 10 बजे और शाम 3 से 5 बजे का समय सबसे उपयुक्त है। सोमवार को घाट के करीब एक किलोमीटर के दायरे में 18 से 20 डॉल्फिन अठखेलियां करती दिखीं। इसके अलावा, कटैया घाट और मस्ताना घाट पर भी डॉल्फिनें देखी जा सकती हैं, हालांकि वहां उनकी उपस्थिति कम होती है। भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 2009 को गांगेय डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। इसका श्रेय पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. आरके सिन्हा को जाता है, जिन्होंने डॉल्फिन के संरक्षण के लिए लंबा संघर्ष किया। डॉल्फिन, जिसे नदी का “शेर” भी कहा जाता है, नदी की आहार श्रृंखला में सबसे ऊपर रहती है। यह लगभग नौ महीने का गर्भकाल पूरा कर बच्चे को जन्म देती है और उसे अपना दूध पिलाकर बड़ा करती है। देश की लगभग आधी और दुनिया की एक तिहाई डॉल्फिनें बिहार में पाई जाती हैं। पटना के गांधी घाट से लेकर फतुहा तक करीब दो दर्जन डॉल्फिन देखी जा सकती हैं। बिहार में डॉल्फिनों की उपस्थिति न केवल राज्य की जैव विविधता को दर्शाती है, बल्कि गंगा नदी के स्वास्थ्य का भी संकेत देती है। डॉल्फिन केवल स्वच्छ और प्रवाहित पानी में ही जीवित रह सकती हैं।डॉल्फिन के संरक्षण के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। इनके शिकार और नदी प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। हालांकि, औद्योगिक कचरा, प्लास्टिक प्रदूषण और नावों की गतिविधियों के कारण इनके जीवन पर खतरा बना हुआ है।डॉल्फिन की उपस्थिति ने फतुहा के त्रिवेणी संगम घाट को पर्यटन स्थल के रूप में उभारा है। लोग इन्हें देखने के लिए नाव की सवारी करते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलता है। इसके साथ ही, यह घाट पर्यावरण संरक्षण और नदी के महत्व को समझाने का एक माध्यम भी बन रहा है। फतुहा का त्रिवेणी संगम घाट न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि डॉल्फिनों की उपस्थिति से यह पर्यावरणीय और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है। यह घटना गंगा नदी की जैव विविधता को बनाए रखने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सफलता को दर्शाती है। डॉल्फिन संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और नदी की स्वच्छता बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है।

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