कोरोना इफ़ेक्ट-खौफ के साए में जी रहे हैं शहरवासी,गांव अब भी हैं गुलजार
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पटना/फुलवारीशरीफ (अजीत यादव ) । कोरोना से पूरी दुनिया डरी हुई है और स्कूल कॉलेजों सरकारी गैर सरकारी प्रतिष्ठानों शॉपिंग मॉल दफ़्तरों अस्पताल तक बन्द हो चुके हैं । ऐसे में अगर कोई ऐसा वर्ग है जो खुशी और हर्षित नजर आ रहा है तो उसके बारे में जानकर आपका चौंकना वाजिब ही होगा। जी हां , स्कूलों की घंटी और मोटे फ्रेम वाली चश्मिश मैडम कड़क डंडे लिए क्लास में प्रवेश करने वाले टीचर्स प्रिंसिपल सर की धमक से सहम जाने वाले बच्चों की बांछे मारे खुशी से खिली हुई नजर आ रही है । बच्चों की बल्ले बल्ले हो गयी है मानो गर्मियों की छुट्टियां अभी से ही सुरूर पर छा गया है । शहरों में रहने वाले और बोर्डिंग आवासीय हॉस्टलों में पढ़ाई करने वाले नौनिहाल लड़के लड़कियों की घर वापसी हो चुकी है। मंजर लिए बौराये आम के मंजरों से झुमते इठलाते बाग बगीचों में धमा चौकड़ी से गाँव ज्वार गुलजार हो रहे हैं। बच्चों की छूट्टीयों का लुत्फ उठाने में मम्मियों की भी खुशियां नैहर मायके बड़की दीदी चचा ताऊ के घरों पर घूमघूम कर रिश्तेदारों के साथ मस्ती और पार्टियों का दौर भी उफान पर है। भले ही सरकारों के फरमान भीड़ भाड़ से लोगों को दूर रहने को जारी किए गए हों लेकिन गांव ज्वार चौपालों खेतो की मेढ़ से लेकर सखी सहेलियों का जुटान अपने शबाब पर है। चौपाल से लेकर गांव की गलियों में चहल पहल से फगुआ बयार मानो अभी भी उफान पर है । कोरोना का डर शहरीकरण के दौर में कोलोनी और सिटी महानगर के लोगो को सहमे सहमे जिंदगी गुजारने को मजबूर किये हुए है लेकीन गांव ज्वार को गुलजार किये हुए हैं।
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कोरोना के डर के बीच ही इन्ही खुशियों को प्रदर्शित करती कविता …….
मौसम की चिड़िया लाई है
लो खुशियों के फूल,
छूट गया डर होमवर्क का
बंद हुए स्कूल।
रोज का मैडम का चिल्लाना
बंद हुआ कुछ रोज,
झंझट छूटा बतलाने का
किसने की क्या खोज।
मौज करें और कूदें-फाँ
सब कुछ जाएँ भूल।
मोटी-मोटी बड़ी किताबें
बस्ते लादे जाना,
किसका पढ़ना और समझना
वक्त गँवाकर आना।
अच्छा हो हम खेलें-कूदें
और उड़ाएँ धूल।
दिल करता है खूब उड़ाएँ
गलियों में गुलछर्रे,
नाचें-गाएँ धूम मचाएँ
हिप-हिन, हिप-हिप हुर्रे!
पेंग बढ़ाएँ, नभ छू आएँ
ऐसी डालें झूल!