चैत्र नवरात्र व विक्रम संवत 2079 शनिवार से शुरू, अश्व पर आगमन व महिष पर होगी माता की विदाई
पटना। सनातन धर्मावलंबियों के नवसंवत्सर, विक्रम संवत 2079 एवं शक्ति व भक्ति का प्रतीक चैत्र नवरात्र कल शनिवार दो अप्रैल को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा में रेवती नक्षत्र व रवियोग के युग्म संयोग में आरंभ हो रहा है। नवसंवत्सर के राजा शनि व मंत्री गुरु होंगे। 100 वर्षों में 15वीं बार तथा 10 साल में दूसरी बार नए साल की आगाज शनिवार से हो रहा है। ब्रह्म पुराण के मुताबिक परम पिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, अनुष्ठान व अन्य धार्मिक कृत्य के लिए श्रेष्ठ होता है। नवरात्र को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक, आत्मशुद्धि व मुक्ति का आधार माना गया है।
शुभ योगों के महासंयोग में चैत्र नवरात्र कल से शुरू
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य आचार्य राकेश झा ने बताया कि चैत्र नवरात्र शनिवार को कलश स्थापना से शुरू होकर 11 अप्रैल सोमवार को विजयादशमी के साथ संपन्न होगा। इस नवरात्र में चार सर्वार्थ सिद्धि, सात रवियोग तथा एक रविपुष्य योग के होने से इसकी महत्ता कई गुना बढ़ गयी है। ऐसे शुभ संयोग में भगवती की उपासना करने से श्रद्धालुओं पर भगवान भास्कर व माता लक्ष्मी की विशेष कृपा तथा अभिष्ट सिद्धि व सर्व मनोकामना शीघ्र पूर्ण होंगे। नवरात्र के दौरान श्रद्धालु मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा करेंगे। देवी मां की कृपा पाने हेतु लोग दुर्गा सप्तशती, कील, कवच, अर्गला, दुर्गा चालीसा, बीज मंत्र का जाप, भगवती पुराण आदि का पाठ करेंगे।
रविपुष्य योग में 10 को महानवमी
ज्योतिषाचार्य राकेश झा के अनुसार चैत्र शुक्ल नवमी 10 अप्रैल को रविपुष्य योग में महानवमी का पर्व मनाया जाएगा। इसी दिन श्रद्धालु देवी दुर्गा के नवम स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा कर विशिष्ट भोग अर्पण, दुर्गा पाठ का समापन, हवन, कन्या पूजन व पुष्पांजलि करेंगे। रामनवमी का व्रत, ध्वज पूजन व शोभा यात्रा भी इसी दिन निकलेगी। रविपुष्य योग का संबंध माता लक्ष्मी से होने के कारण इस दिन भूमि-भवन की खरीदारी, पूंजी निवेश, व्यवसाय या नौकरी की शुरूआत, वाहन, रत्न व आभूषण की खरीदी करना उत्तम माना गया है। वहीं 11 अप्रैल को चैत्र शुक्ल विजयादशमी में देवी की विधिवत विदाई, जयंती धारण कर नवरात्र व रामनवमी व्रतधारी पारण करेंगे।
अश्व पर होगा देवी का आगमन
पंडित झा के पंचांगीय गणना के आधार पर बताया कि चैत्र नवरात्र का पहला दिन शनिवार होने से देवी दुर्गा का आगमन अश्व यानि घोड़ा पर होगा। घोड़े पर भगवती के आगमन से समाज में अस्थिरता, तनाव, राजनीति उथल-पुथल, चक्रवात, भूकंप की स्थिति उत्पन्न होती है। वहीं चैत्र शुक्ल विजयादशमी को सोमवार दिन होने से माता की विदाई महिष पर होगी। देवी के इस गमन से देश में रोग-शोक, अकारण मृत्यु, प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति बन सकती है। इसके अनिष्ट दोष के बचने हेतु नवरात्र में पूजा-पाठ के बाद क्षमा प्रार्थना, स्तुति करना चाहिए।
कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
तिथि मुहूर्त : प्रात: 05:50 बजे से दोपहर 11:39 बजे तक
गुली काल मुहूर्त : प्रात: 05:41 बजे से 07:14 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 11:28 बजे से 12:18 बजे तक
चर योग : दोपहर 11:53 बजे से 01: 26 बजे तक
लाभ योग : दोपहर 01:15 बजे से 02:59 बजे तक
अमृत योग : अपराह्न 02:59 बजे से शाम 04:32 बजे तक