हिन्दी दिवस पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ समारोह, परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर ने 14 हिन्दी-सेवियों को किया सम्मानित
- कवि एम.के. मधु के काव्य-संग्रह ‘रानी रूपमती की चाय-दुकान’ का हुआ लोकार्पण
पटना। हिन्दी भारत की सबसे लोकप्रिय भाषा है। वह दिन दूर नहीं जब यह अपनी वैज्ञानिकता और सरसता के कारण हर जिह्वा पर छा जाएगी। पूरी दुनिया में इसकी गूंज होगी, जिस पर प्रत्येक भारत-वासी को गौरव होगा। शीघ्र ही यह देश की ‘राष्ट्र-भाषा’ भी बनेगी। क्योंकि यह सबके दिल में उतर जाएगी, ख़ुशबू बनकर महकेगी और धड़कन-धड़कन बन जाएगी। यह बातें गुरुवार को हिन्दी साहित्य सम्मेलन में ‘हिन्दी-दिवस’ के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। डॉ. सुलभ ने कहा कि वर्ष 2025 से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ‘हिन्दी दिवस’ पर उत्सव मनाना छोड़ देगा, क्योंकि जिस लिए यह दिवस मनाया जाता है, संविधान-सभा के उस निर्णय का तो अनुपालन आज तक हुआ ही नहीं। अगले 14 सितम्बर को भारत की सरकार औपचारिक रूप से हिन्दी को देश की ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित कर दे, तभी आगे से इस उत्साव का कोई महत्त्व है, अन्यथा यह तो भारत के लोगों का उपहास ही माना जाएगा। इसके पूर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए बिहार विधान परिषद के सभापति देवेशचंद्र ठाकुर ने कहा कि यह आश्चर्य और चिंता का विषय है कि अभी तक हिन्दी को वह स्थान नहीं मिल सका है, जो इसे संविधान-सभा ने देना चाहा था। यह शुद्ध वैज्ञानिक भाषा है, संस्कृत पर आधारित है। ठाकुर ने इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार एम. के. मधु की पुस्तक ‘रानी रूपमती की चाय दुकान’ का लोकार्पण भी किया। वही इस समारोह के मुख्य अतिथि और उपभोक्ता संरक्षण आयोग बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि जब तक हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा नही बनायी जाती हमें संघर्ष जारी रखना होगा। हिन्दी भाषा का भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि यह बाज़ार की भाषा बन चुकी है। वही दूर दर्शन के कार्यक्रम प्रमुख डॉ. राज कुमार नाहर, सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, आकाशवाणी के समाचार एकांश के उप निदेशक अजय कुमार, डॉ. मधु वर्मा, डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।