सीतामढ़ी के बाजपट्टी में हजारों साल पुराने बोधायन मंदिर को अब तक नहीं मिला मुकाम
बाजपट्टी (सीतामढ़ी)। जिले के बाजपट्टी प्रखंड के बनगांव में मौजूद बोधायन मंदिर जनप्रतिनिधियों के उपेक्षा की वजह से अपने मुनासिब मुकाम तक नहीं पहुंच पाया।
हम यूं भी कह सकते हैं ,जिस बोधायन भगवान की तपोभूमि पर उनकी प्रतिमा को स्थापित किया गया। उसके हिसाब से इस मंदिर को प्रसिद्धि नहीं मिल पाई।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बोधायन भगवान इसी बनगांव के रहने वाले थे। वे वैज्ञानिक व धार्मिक ज्ञान के समंदर थे, यही वजह है कि हजारों वर्ष पहले मौत के बाद उन्हें भगवान का दर्जा मिला। उन्होंने गणित विषय के (पाई) का वैल्यू मान बताया,साथ ही दो का वर्गमूल निकालने का फामूर्ला भी दिया।
इसके अलावा गणित में और भी कई खोज भी की। उन्होंने सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार पूरे राष्ट्र स्तर पर किया। अयोध्या व कश्मीर सहित कई धार्मिक स्थलों पर जाकर लोगों को सनातन धर्म के बारे में विस्तार से समझाया।
धीरे-धीरे पूरे देश में उनके अनुयायी बनते गए। अंत समय में उन्होंने गुजरात में अपने भक्तों के कहने पर रहने लगे। बाद में उन्होंने समाधि भी गुजरात में ही ली।
गौरतलब यह है कि बनगांव के लोग सैकड़ों पीढियां गुजारने के बाद भी भगवान बोधायन के बारे मे नहीं जान पाए थे। स्थानीय लोग बताते हैं कि 1957 में हमारे गांव के ही स्वामी सार्वभौम वासुदेव आचार्य ने संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन के बाद यह ढूंढ निकाला कि पाई का मान निकालने वाले गणित के महान विद्वान भगवान बोधायन बाजपट्टी प्रखंड के बनगांव के रहने वाले हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सार्वभौम वासुदेवा संस्कृत विषय के इतने बड़े विद्धान थे कि तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वोपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें सार्वभौम की उपाधि दी थी।
साथ ही उन्हें बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में संस्कृत विषय का हेड बनाया था। आज भी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में वासुदेव आचार्य का नाम विद्वानों की सूची में दर्ज है।
अयोध्या में भी सार्वभौम वासुदेवा का दार्शनिक आश्रम है। अभी वर्तमान में उस आश्रम के महंत जनार्दन दास जी महाराज हैं। वह भी बाजपट्टी प्रखण्ड के बनगाँव के ही रहने वाले थे। उन्होंने ही काफी गहरे अध्यन के बाद संस्कृत के ग्रन्थों से खोज निकाला था कि भगवान बोधायन भी बनगांव के ही रहने वाले थे।
उनका इतिहास 1200 से 800 ईसा पूर्व का माना जा रहा है। उन्होंने ही 1957 में भगवान बोधायन की प्रतिमा लाकर इस जगह स्थापित की थी। गांव के जमींदारों ने 25 एकड़ जमीन इस मंदिर को दान में दे दिया।
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हजारों साल पुराने इतिहास वाले इस मंदिर की जगह को पर्यटक स्थल का दर्जा नहीं मिलना कितना बड़ा अपमान हो सकता है। इसमें सबसे बड़ी लापरवाही स्थानीय लोगों की ही समझी जाएगी।
अब सवाल पैदा होता है कि वर्ष 2019 में माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाजपट्टी आकर भगवान बोधायन के मंदिर का दर्शन भी किया साथ ही पर्यटक स्थल बनवाने की बात भी कही उसके बाद भी आज तक मामला ठंढे बस्ते में बंद है।जो कि चिंता का विषय है।
हद तो यह है कि इतनी पुरानी मंदिर को एक चाहरदीवारी भी नसीब नहीं, जिसकी वजह से स्थानीय लोग मंदिर परिसर में ही मवेशी बांधते हैं, साथ ही आवारा लड़के यहां आकर रात में नशे का सेवन भी करते हैं।