मूर्ति निर्माण को लेकर बिहार सरकार का गाइड लाइन, पढ़े लें वर्ना बाद में पछताएंगे
पटना। भारत में मूर्ति निर्माण एवं विसर्जन की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। पहले देवी-देवताओं के पूजन के लिए सिर्फ उपलब्ध प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता था। मूर्तियां भी चिकनी मिट्टी की बनाई जाती थी एवं उन्हे प्राकृतिक रंगों से ही रंगा जाता था। लेकिन अब मिट्टी के अतिरिक्त प्लास्टर आॅफ पेरिस, सजावट के लिए धातुओं के आभूषण, तैलीय पदार्थ, सिंथेटिक रंगों, विषाक्त रसायनों का उपयोग किया जाने लगा है। पूजन के पश्चात ऐसी मूर्तियों के जल स्रोतों में विसर्जन से जल प्रदूषण की समस्या बढ़ी है। उच्च न्यायालय, मुम्बई के निर्देशों के अनुपालन में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा त्योहारों के दौरान मूर्ति व अन्य पूजन सामग्री के जल निकायों में विसर्जन के लिए दिशा-निर्देश बनाये हैंै। जैसे मूर्ति बनाने में प्लास्टर आॅफ पेरिस, पकाये गये मिट्टी इत्यादि का उपयोग न कर पारंपरिक मिट्टी तथा इको-फ्रेन्डली वस्तुओं का ही प्रयोग करने का दिशा-निर्देश जारी किया है। वहीं मूर्ति रंगने के लिए पानी में घुलनशील तथा विष-रहित प्राकृतिक रंजकों का ही प्रयोग करने की सख्त हिदायत दी है। इसके साथ ही मूर्ति विसर्जन को लेकर भी अन्य दिशा निर्देश जारी किया है।
विदित है कि विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरस्वती पूजा आदि के अवसरों पर विभिन्न पंडालों में मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। मूर्ति के निर्माण में पर्यावरण के दृष्टिकोण से वर्जित समाग्री का भी उपयोग कर दिया जाता है। साथ ही मूर्तियों को विभिन्न जल स्रोतों यथा नदी, तालाब, झील आदि में गैर-योजनाव (तरीके से विसर्जित किया जाता है, जिससे जल स्रोतों के प्रदूषित होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। उक्त संदर्भ में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद् ने राज्य के सभी जिला पदाधिकारियों से पूजा पंडालों के निबंधन के समय ही उपरोक्त नियमों के दृढ़ता पूर्वक अनुपालन हेतु आवश्यक निर्देश देने, सभी से इस आशय का शपथ-पत्र प्राप्त करने साथ ही संबंधित हितधारकों के बीच नियमों के पालन हेतु समुचित प्रचार-प्रसार की व्यवस्था करने का निर्देश जारी किया है।