कोरोना की दूसरी लहर ने खोली व्यवस्था की पोल, अलॉट होने पर भी नहीं मिला बेड
रांची । कोरोना महामारी की इस दूसरी लहर ने व्यवस्था की सारी पोल खोल दी है। सबसे पहले तो मरीजों को बेड नहीं मिल रहा है। बेड मिल रहा है तो दवा नहीं मिल रही है। दवा बेड दोनों हैं तो ऑक्सीजन का इंतजाम खुद करना पड़ रहा है। इन सब से पार किसी तरह पा भी लिया जाए तो पैरवी आम लोगों को पस्त कर दे रही है।
रातू के रहने वाले उमाशंकर अपने 70 वर्षीय पिताजी को लेकर रिम्स में 17 अप्रैल से भर्ती हैं। डॉक्टर ने 18 को लिख दिया कि मरीज सीरियस है, इनकी एसपीओटू 45 प्रतिशत हो गई है। इन्हें ट्रामा सेंटर में भर्ती ले लिया जाए। उमाशंकर को तीन दिनों तक बेड अलॉट नहीं किया गया। अंतिम में यह लिख दिया गया कि ट्रामा सेंटर में बेड खाली नहीं है, जिसके बाद किसी तरह मेडिसीन आईसीयू में इनको एक बेड अलॉट किया गया। जब तक उमाशंकर अपने पिताजी को लेकर वहां पहुंचे, उन्हें पता चला कि उनके लिए सुरक्षित रखा गया बेड एक डॉक्टर ने अपने परिजन को दे दिया है। उमाशंकर ने जब डॉक्टरों से पूछा कि ऐसा क्यों किया गया तो उन्होंने बताया कि आप 10 मिनट देर हो गए, जिस कारण इन्हें बेड अलॉट कर दिया गया। अब उमाशंकर परेशान हैं कि वे अब अपने पिताजी को कैसे बचाएंगे। उनका कहना है कि मैं न डॉक्टर हूं, न उनके पास कोई पैरवी है। अब भी उमाशंकर डॉक्टर के चक्कर काट रहे हैं कि कोई उनके सीरियस मरीज को बचा ले।
जांच में कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद प्रोटोकॉल के हिसाब से रिम्स लाने के लिए एंबुलेंस की सुविधा मिलनी चाहिए थी, पर लगातार 108 से जवाब नहीं मिल रहा है। ऐसे में परिजन मरीज को लेकर स्कूटी से ही रिम्स पहुंच रहे हैं। ऐसे में मरीज के साथ परिजन के भी संक्रमित होने का खतरा है। रिम्स में दोपहर 1 से 3 बजे के बीच ऐसे 2 मरीज मिले, जिन्हें परिजन स्कूटी से रिम्स लेकर पहुंचे। जिनमें से एक मरीज कांटाटोली और दूसरे डोरंडा के रहने वाले थे। परिजन से जब पूछा गया, ऐसा उन्होंने क्यों किया तो बताया कि कोई भी एंबुलेंस वाला 6 हजार से कम में लाने को तैयार नहीं था, जबकि सरकारी एम्बुलेंस सेवा फोन नहीं उठा रही।
रिम्स के ट्रामा सेंटर के बाहर दोपहर 2:30 बजे डोरंडा का एक परिवार कोरोना संक्रमित महिला को लेकर रिम्स पहुंचा। वह खुद की गाड़ी में थे और उन्होंने अपने साथ एक सिलेंडर भी रखा था। परिवार वालों ने बताया कि वह 7 सिलेंडर लेकर चल रहे हैं। सांस लेने में काफी समस्या है और ऑक्सीजन सपोर्टेड एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं हो सकी। बता दें कि रिम्स में एडमिट करने में और बेड मिलने में काफी समस्या हो रही है, इसलिए मरीज को जान बचाने के लिए ऑक्सीजन साथ लेकर चलना पड़ रहा है। रिम्स में अब ऑक्सीजन के साथ पहुंच रहे मरीजों के नजारे आम हो चुके हैं।
कांके की एक महिला अपने परिजन के साथ रिम्स में भर्ती होने आई थी। महिला 64 वर्ष की थी और 4 घंटे इंतजार करती रही। परिवार वालों के काफी प्रयास करने के बाद भी बेड का अरेंजमेंट नहीं हो सका। अंत में उन्हें वापस जाना पड़ा। कांके की इस महिला ने बताया कि वो तीन अस्पताल जा चुकी हैं, पर बेड नहीं मिल रहा। रिम्स में दिन भर में कई मरीज ऐसे आते हैं, जो तीन से चार घंटा इंतजार करने के बाद निराश वापस लौट जाते हैं।