हवाओं में, फिजाओं में घुला है जहर, 93 फीसदी बच्चों के फेफड़ों में भर रहा जहर
अमृतवर्षाः मामला बहुत गंभीर है। डब्लयूएचओ (वल्र्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन) की एक रिपोर्ट आयी है जो यह कहती है कि दुनिया के 93 फीसदी बच्चे जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है। जाहिर यह रिपोर्ट चिंतित करने वाली है।दिल्ली के साथ देश और दुनिया भी वायु प्रदूषण की चपेट में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदूषण और बच्चों पर जारी नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 18 साल से कम उम्र के 93 फीसदी लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। ‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य रू स्वच्छ वायु निर्धारित करना’ नाम से जारी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2016 में वायु प्रदूषण से होने वाली श्वसन संबंधी बीमारियों की वजह से दुनियाभर में 5 साल से कम उम्र के 5.4 लाख बच्चों की मौत हुई है। 5 साल से कम उम्र के 10 बच्चों की मौत में से 1 बच्चे की मौत का कारण प्रदूषित हवा है। भारत जैसे देश में लगभग पूरी जनसंख्या डब्ल्यूएचओ और राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। ग्रीनपीस इंडिया के वायु प्रदूषण कैंपेनर सुनील दहिया ने बताया कि वैश्विक स्तर पर सेटेलाइट डाटा के विश्लेषण के मुताबिक कोयला और परिवहन उत्सर्जन के दो प्रमुख स्त्रोत हैं। नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (एनओ2) भी पीएम 2.5 और ओजोन के बनने में अपना योगदान देता है, ये दोनों वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक रूपों में बड़े क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। देश में दिल्ली-एनसीआर, सोनभद्र-सिंगरौली, कोरबा व ओडिशा का तेलचर क्षेत्र इन 50 क्षेत्रों की सूची में शामिल है। इन तथ्यों से साफ है कि ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन जलने का वायु प्रदूषण से सीधा संबंध है।