आरसीपी सिंह व परिवार पर लगे आरोप में नहीं दिखता दम,हैसियत से आधी सम्पति भी नहीं,जांच के बाद..
पटना।(बन बिहारी) जदयू के द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद पार्टी को डूबता हुआ जहाज बताते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया। दरअसल जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा के द्वारा पत्र लिखकर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह से उनके तथा उनके परिजनों के द्वारा नालंदा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में खरीदी गई तकरीबन 40 बीघा जमीन की जानकारी मांगी गई थी।इस पत्र के सार्वजनिक हो जाने के बाद कल आरसीपी सिंह ने जदयू को डूबता हुआ जहाज बताते हुए पार्टी के प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।महत्वपूर्ण प्रश्न है की आरसीपी सिंह पर दो कार्यकर्ताओं के द्वारा लिखी गई शिकायत एवं जांच के आधार पर जो आरोप पार्टी के द्वारा तय किए गए हैं।वह कितनी देर तक कानूनी तौर पर टिक पाएंगे।जदयू के पॉलिटिकल मैनेजर्स ने जो ‘यॉर्कर’ बॉल आरसीपी सिंह पर फेंका है।वह जल्द ही ‘बाउंसर’ बनकर ‘फ्रीहिट’ का कारण बनेगा।दरअसल आरसीपी सिंह पर जदयू के दो कार्यकर्ताओं के द्वारा किए गए जांच के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में तकरीबन 40 बीघा जमीन अपने तथा अपने परिजनों के नाम पर खरीदने का आरोप पार्टी के समक्ष निर्धारित किया गया।जानकार सूत्रों का मानना है कि उक्त 40 बीघा जमीन औसतन 9 हजार प्रति डिसमिल मतलब 27 हजार प्रति कट्टा सरकारी दर वाली जमीन है।ऐसे में 40 बीघा मतलब 800 कट्ठा जमीन की सरकारी वैल्यू तकरीबन सवा दो करोड़ होती है।अगर बाजार भाव जमीन का अधिकतम 3-30 करोड़ रूपया भी समझा जाए।तो इतने मूल्य की जमीन आरसीपी सिंह तथा उनके परिजनों के लिए आय से अधिक संपत्ति के मामले का कारण नहीं बन सकती है। डी ए मामले के जानकार ने बताया आरसीपी सिंह कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हुए तब उनकी वेतन तकरीबन 2 लाख 80 हजार रुपए रही होगी।ऐसे में सेवानिवृत्ति के उपरांत बतौर पेंशन उन्हें प्रतिमाह तकरीबन 1.30 रुपए मिलते होंगे।रिटायरमेंट के समय भी तकरीबन 2 करोड़ रुपए से अधिक की राशि सेवानिवृत्ति लाभ के तहत आरसीपी सिंह को प्राप्त हुई होगी। राज्यसभा सदस्य के रूप में भी 2010 से लेकर 2022 के जुलाई तक आरसीपी सिंह को बतौर वेतन एवं भत्ते के रूप में तकरीबन 2 लाख मासिक मिलते होंगे।जिसमें आवश्यक खर्च काटने के बाद एक निश्चित राशि बचत के रूप में स्थापित होती होगी। इतना ही नहीं जहां तक आरपी सिंह की बेटी आईपीएस लिपि सिंह का सवाल है।तो लिपि सिंह की सैलरी 2016 में नियुक्ति के वक्त से लेकर 2022 तक आईपीएस के वेतनमान के अनुसार 1 लाख 20 हजार मासिक जरूर रही होगी।ऐसे में तकरीबन 4 करोड रुपए मूल्य के जमीन की खरीद आय से अधिक संपत्ति के दायरे में भला कैसे आएगा?ऐसे में आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला सिर्फ इन भूखंडों के आधार पर निर्धारित नहीं किया जा सकता।इसके बावजूद आरसीपी सिंह ने जो कल दावा किया कि उक्त संपत्ति उनके द्वारा अर्जित किए गए रकम से नहीं खरीदी गई। वरन यह संपत्ति उनकी दोनों बेटियों ने अपने दादा,जो सेवानिवृत्त अध्यापक थे,के द्वारा दी गई संपत्ति एवं जमीन पर होने वाले कृषि के आय से खरीदी है।यह बात अलग है कि बिहार में सीएम नीतीश कुमार के प्रधान सचिव तथा बाद में जदयू में नंबर दो कहे जाने वाले आरसीपी सिंह पर लगातार विपक्ष के द्वारा आरसीपी टैक्स वसूली का आरोप लगाया जाता रहा।अगर आरसीपी टैक्स के मामले की बात होती तो सरकार को पूरे प्रकरण की जांच उस वक्त ही स्पेशल विजिलेंस यूनिट या इकोनामिक ऑफेंस यूनिट के द्वारा जांच कराई जाती।लेकिन उस वक्त सीएम नीतीश कुमार समेत पूरी जदयू आरसीपी टैक्स के आरोपों को नकारते रही।अब इकोनामिक ऑफेंस यूनिट के द्वारा जांच कराने की बात की जा रही है।अब किसी प्रकार के एजेंसी के द्वारा जांच के दौरान आरसीपी सिंह की अन्य संपत्तियां तथा स्रोत उजागर होते हैं।तो वह दूसरा मामला बनेगा।मगर अभी जदयू के द्वारा जो जांच कराकर 40 बीघा जमीन को आय से अधिक संपत्ति बताने का प्रयास किया जा रहा है। मामले के जानकारों का यही कहना है कि यह कानूनी तौर पर ज्यादा देर नहीं टिकेगा।अगर सरकार को आरसीपी सिंह पर वित्तीय गड़बड़ी करने का संदेह था।तो नियमतः एसभीयू या ईओयू से पूरे मामले की जांच कराई जानी चाहिए।मगर जदयू के द्वारा स्वयं जांच कर यहां तक मामले को पहुंचाना अधिकांश लोगों को आरसीपी सिंह के खिलाफ बस पॉलिटिकल ऑपरेशन ही प्रतीत हो रहा है।
Report-Ban Bihari