कोटा में फिर बिहारी छात्र ने की आत्महत्या, नीट की करता था तैयारी, फांसी लगाकर दी जान

पटना। कोटा, जो देशभर के लाखों छात्रों के लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी का प्रमुख केंद्र माना जाता है, एक बार फिर दुखद घटना का गवाह बना है। बिहार के छपरा जिले से ताल्लुक रखने वाले एक छात्र ने यहां आत्महत्या कर ली। वह पिछले एक साल से कोटा के कुन्हाड़ी इलाके में रहकर नीट की तैयारी कर रहा था।
कमरे में फांसी के फंदे से लटका मिला छात्र
पुलिस के अनुसार, छात्र अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी पर लटका हुआ मिला। सुबह जब वह अपने कमरे से बाहर नहीं आया तो हॉस्टल संचालक को शक हुआ। संचालक ने जब दरवाजा खटखटाया और कोई जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने तुरंत कुन्हाड़ी थाना पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंचकर पुलिस ने जब दरवाजा तोड़ा तो छात्र का शव फंदे से झूलता मिला।
सुसाइड नोट में लिखी मार्मिक बातें
मौके से पुलिस को एक सुसाइड नोट भी मिला है, जिसमें छात्र ने यह स्पष्ट किया है कि उसकी आत्महत्या की वजह नीट परीक्षा नहीं है। उसने यह भी लिखा था कि उसके नाम, तस्वीर या परिवार की जानकारी को सार्वजनिक न किया जाए। इस पत्र ने पुलिस अधिकारियों तक को भावुक कर दिया और सभी की आंखें भर आईं।
पढ़ाई का दबाव या कोई और कारण?
हालांकि छात्र के पत्र में नीट परीक्षा को आत्महत्या का कारण नहीं बताया गया है, लेकिन फिर भी यह सवाल बना हुआ है कि आखिर उसके भीतर ऐसी कौन-सी पीड़ा थी, जिसने उसे यह कठोर कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। पुलिस का कहना है कि छात्र ने आत्महत्या से पहले अपनी बहन को एक अंतिम मैसेज भी भेजा था।
पुलिस कर रही है गहराई से जांच
फिलहाल छात्र के मोबाइल फोन और अन्य निजी सामान को जब्त कर लिया गया है। पुलिस तकनीकी जांच के साथ-साथ सुसाइड नोट और पारिवारिक बातचीत के आधार पर आगे की तहकीकात कर रही है।
कोटा में आत्महत्याओं का सिलसिला थम नहीं रहा
कोटा में यह पहला मामला नहीं है। हर साल देशभर से आए कई छात्र यहां परीक्षा की तैयारी के दौरान आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं। अत्यधिक मानसिक दबाव, अकेलापन, भविष्य की चिंता, या पारिवारिक समस्याएं – ये सभी कारण धीरे-धीरे एक छात्र के मन में हताशा भर देते हैं। यह घटना केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि हमें छात्रों की मानसिक स्थिति और उनके तनाव को गंभीरता से लेना होगा। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के दौरान उन्हें सही मार्गदर्शन, मानसिक समर्थन और भावनात्मक सहारा देना समय की आवश्यकता बन गई है।

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