February 5, 2025

छत्तीसगढ़ में 11वीं की छात्रा ने जीभ काटकर मंदिर में चढ़ाया, साधना में बैठी, लोगों की भीड़

सक्ति। छत्तीसगढ़ के सक्ति जिले के ग्राम देवरघटा के अचरीपाली में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। 16 वर्षीय आरुषि चौहान, जो 11वीं कक्षा की छात्रा है, ने अपनी गहरी धार्मिक आस्था के चलते अपनी जीभ काटकर भगवान भोलेनाथ को समर्पित कर दी। इसके बाद उसने खुद को मंदिर में बंद कर साधना शुरू कर दी है। मंगलवार सुबह करीब 7 बजे, आरुषि ने घर के पास तालाब किनारे स्थित भोलेनाथ के मंदिर में जाकर अपनी जीभ काट दी। इस घटना के बाद उसने मंदिर के दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया और भक्ति में लीन हो गई। आरुषि ने इस कदम से पहले अपनी नोटबुक में छत्तीसगढ़ी में कुछ संदेश लिखे थे। इन संदेशों में उसने सभी को मंदिर के करीब न आने की चेतावनी दी और कहा कि अगर कोई उसकी साधना में बाधा डालेगा, तो गंभीर परिणाम होंगे। आरुषि ने अपनी कॉपी में स्पष्ट रूप से लिखा कि किसी भी व्यक्ति, चाहे वह उसके माता-पिता हों या सरकारी अधिकारी, को मंदिर के अंदर नहीं आना चाहिए। उसने यह भी लिखा कि यदि उसकी साधना बाधित हुई, तो हत्या जैसी घटनाएं हो सकती हैं। यह संदेश लोगों को डराने वाला था, और इसके कारण परिवार और ग्रामीण मंदिर के बाहर इकट्ठा हो गए। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे। हालांकि, गांव वालों ने किसी को भी मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी। यहां तक कि आरुषि के माता-पिता ने भी बेटी को अस्पताल ले जाने से इनकार कर दिया। 108 एम्बुलेंस सेवा और डॉक्टरों की टीम मौके पर मौजूद है, लेकिन आरुषि को बाहर निकालने के प्रयास सफल नहीं हो सके। आरुषि के इस कदम से उसका परिवार और गांववाले हैरान और चिंतित हैं। परिवार के अनुसार, आरुषि पिछले कुछ समय से भगवान भोलेनाथ की भक्ति में गहराई से जुड़ी हुई थी, लेकिन ऐसा कठोर कदम उठाने की कोई आशंका नहीं थी। गांव वालों का कहना है कि छात्रा की आस्था और साधना को वे बाधित नहीं करना चाहते। यह घटना न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि एक युवा दिमाग की मनोवैज्ञानिक स्थिति को भी उजागर करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के चरम कदम गहरी मानसिक और भावनात्मक समस्या का संकेत हो सकते हैं। यह घटना धार्मिक आस्था और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करती है। हालांकि, आरुषि का यह कदम उसकी भक्ति को दर्शाता है, लेकिन उसकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। प्रशासन और ग्रामीणों के बीच संवाद और सहयोग से इस स्थिति का समाधान निकाला जा सकता है।

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