भारत बंद : पर्दानशीं महिलाएं भी हाईवे पर उतरी, लगाये सरकार विरोधी नारे

एनपीआर, सीएए और एनआरसी के विरोध में सड़क पर उतरे कई दलों के सैंकड़ो कार्यकर्ता, इमारत शरिया भी शामिल
फुलवारी शरीफ। एनपीआर, एनआरसी व सीएए के विरोध में बामसेफ, सीपीआई, हम, जाप सहित अन्य कई दलों के सैंकड़ो कार्यकर्ताओं ने फुलवारी शरीफ के शहीद भगत सिंह चौक, टमटम पड़ाव, इमारत शरिया, हारून नगर सहित आसपास के सभी प्रमुख इलाकों में सड़कों पर उतर कर जोरदार प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में इमारत शरिया भी शामिल हुई। हारून नगर के सामने पर्दानशी महिलाएं भी नेशनल हाईवे 98 पर उतरी और सरकार विरोधी नारेबाजी की। महिलाएं कई इबारतें लिखी तख्तियों को हाथो में लिए प्रदर्शन करती रही, जिनमें लिखा था हमारे अब्बा के वालिद के पास जमींन घर बार का कागजात था, दादा अब्बा एक बकरा पाले हुए थे और बकरा दस्तावेज खा गया फिर दादा अब्बा उस बकरे को खा गये, अब कागजात कहा से लायें।

फुलवारी में भारत बंद में भाकपा माले के कार्यकर्ताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। शहीद भगत सिंह चौक पर करीब ढाई घंटे तक प्रदर्शन से आवागमन बाधित रहा। सभी प्रदर्शनकारियों को फुलवारी पुलिस ने गिरफ्तार कर थाने ले गयी, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया। गिरफ्तारी देने वालों में माले के प्रखंड सचिव गुरुदेव दास, शरीफा मांझी, मुमताज अंसारी, छोटे मांझी, राजकुमार राय, जिला कमेटी सदस्य साधु शरण, देवीलाल, रंजन दास आदि प्रमुख रहे। शहर में करीब तीन घंटे तक भारत बंद के समर्थन में विभिन्न दलों के कार्यकर्ताओं की भीड़ भाजपा सरकार के गलत नीतियों और फैसलों के खिलाफ नारेबाजी करके विरोध प्रदर्शन किया। इमारत शरिया के सामने इमारत के मौलाना भी देश में विभेद पैदा करने वाले भाजपा सरकार के फैसलों का पुरजोर विरोध किया।
इमारत शरिया के अमीर-ए-शरियत हजरत मौलाना मोहम्मद वली रहमानी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनपीआर के संबंध में हाल ही में दिये गए वक्तव्य का स्वागत करते हुए कहा है कि हम मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य का स्वागत करते हैं कि एनपीआर में वही प्रश्न पूछे जाने चाहिए जो 2010 में पूछे गए थे। अगर मुख्यमंत्री के प्रयास से ऐसा हो जाता है एवं एनपीआर में 2010 के अनुसार प्रश्नों में कोई नया प्रश्न सम्मिलित नहीं किया जाता है तो उससे देश के लोगों को बड़ी आसानी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि देश में जन्म एवं मृत्य के रजिस्ट्रेशन का कानून 1969 में बना और 1985 में लागू हुआ, इसलिए केंद्र सरकार का 1985 से पहले पैदा होने वाले लोगों से जन्मतिथि मालूम करना एवं जन्म प्रमाण पत्र मांगना न तो न्यायसंगत है और न तर्कसंगत।