PATNA : नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन बिदेसिया और कायर का मंचन
खगौल। खगौल के पूर्व मध्य रेलवे सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रेक्षागृह में आयोजित तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन दो नाटकों का मंचन किया गया। नाट्य संस्था सूत्रधार के 42वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में सूत्रधार की ओर से भिखारी ठाकुर लिखित, उदय कुमार-सह-अंबुज कुमार निर्देशित नाटक बिदेसिया का मंचन किया गया। जबकि दूसरी प्रस्तुति न्यू जयशिका ए स्कूल आफ आर्ट्स, पटना की ओर से नाटक ‘कायर’ प्रेमचंद लिखित, नाट्य रूपांतरण मृत्युंजय शर्मा, निदेशक नीरज कुमार की प्रस्तुति हुई। बिदेसिया के कलाकारों में अनिल सिंह, भारत आर्य, अंबुज कुमार, साधना श्रीवास्तव, पल्लवी प्रियदर्शिनी, वीरेंद्र ओझा, परमानंद प्रेमी, शत्रुघन कुमार, सुमन कुमार, कमलेश पासवान आदि शामिल थे। जबकि ‘कायर’ के कलाकारों में अमित राय, अनिकेत कुमार, निशा कुमारी, शशि भूषण कुमार, दीपक कुमार, रत्नेश कुमार, छोटू कुमार, सेजल भारती, निशांत कुमार, श्रवण कुमार, आदित्य कुमार, मधु कुमारी, सनी कुमार, नीरज कुमार, राहुल कुमार भोला आदि शामिल थे।
नाटक से पूर्व इस नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार व कहानीकार कमलेश ने अपने संबोधन में कहा कि नाटकों का हमारी सभ्यता और संस्कृति से पुराना रिश्ता है। समाज को जागरूक करने में नाटकों की अहम भूमिका होती है। प्रसिद्ध समाजसेवी और चिकित्सक डॉ. गौतम भारती ने कहा कि नाट्य महोत्सव, कला एवं संस्कृति बचाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि नाटक के जरिए कलाकार समाज को सकारात्मक संदेश देते हैं।
आरंभ में सूत्रधार के महासचिव वरिष्ठ रंगकर्मी नवाब आलम ने अतिथियों को पुष्प गुच्छ और अंग वस्त्र देकर स्वागत किया और नाट्य दलों का अभिवादन किया। संचालन विनोद शंकर मिश्र ने एवं धन्यवाद ज्ञापन संयोजक प्रसिद्ध यादव ने किया।
मौके पर संजीव प्रसाद जवाहर, उदय शंकर यादव, अनिल कुमार, अशोक कुणाल, दीप नारायण शर्मा दीपक,राज कुमार शर्मा, अरुण सिंह पिंटू, मनोज, विजय कुमार, दयानंद राय, परमेश्वर ठाकुर,जमुना प्रसाद प्रमुख रूप से मौजूद थे।
बिदेसिया का मंचन
भिखारी ठाकुर का बिदेसिया केवल नाट्य अथवा नाट्य शैली भर नहीं है। अपने लिखे और खेले जाने के समय से ही बिदेसिया भोजपुरी अंचल के गबरु जवानों के पलायन और उनकी व्याहता स्त्रियों के दर्द का दस्तावेज बन चुका है। इसका कथानक बस इतना है कि गांव का एक युवक अपने दोस्त से कोलकाता की बढ़ाई सुनकर स्वयं कोलकाता जाना चाहता है, पर उसकी नवव्याहता पत्नी आशंकित हो मना कर देती है और न जाने का अनुरोध भी करती है। उधर नायक बिदेसिया की पत्नी गांव में वियोग में रोती बिलखती रहती है। उसकी चिंता यह भी है कि परदेस में पति की क्या दशा होगी, वह कैसे रहता होगा। लेकिन उसको उम्मीद है कि एक दिन उसका पति अवश्य लौटेगा। इसी बीच एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बटोही कमाने के लिए कोलकाता की ओर जा रहा था। बिदेसिया की पत्नी प्यारी सुंदर को जब यह बात पता चलती है, तो वह उससे अपने पति तक संदेश पहुंचाने की मिन्नत करती है। कोलकाता पहुंचने पर उसे बिदेसिया मिल जाता है। वह बिदेसिया से उसकी पत्नी की कारू निक कथा कहता है, जिसे सुनकर बिदेसिया को अपने घर और पत्नी की याद आने लगती है और वह वापस लौटने को उत्साहित हो जाता है। बिदेसिया की कहानी जितनी सरल और सहज दिखती है, उतनी है नहीं। इसमें आंतरिक प्रवसन की पीड़ा ही नहीं छुपी, बल्कि भोजपुरी अंचल में व्याप्त शोषण और अभाव की बहुस्तरीय परतों का बयान भी है।
कायर का मंचन
कायर प्रेमचंद के द्वारा लिखित एक कहानी है, जिस का नाट्य रूपांतरण मृत्युंजय शर्मा ने किया है। आधुनिक परिवेश में रखकर किया जा रहा है। प्रेमा एक वैश्य परिवार से है, केशव ब्राह्मण परिवार से हैं। दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं। जब केशव प्रेमा से अपनी शादी की बात कहा, तो प्रेमा ने मना कर दिया, लेकिन प्रेमा मन ही मन केशव को बहुत प्यार करती थी। जब प्रेमा के पिताजी को पता चलता है तो वे प्रेमा को मारते-पीटते हैं तथा काफी गुस्सा करते हैं और अपनी पत्नी से बात-विचार करने के बाद यह निर्णय लिया जाता है कि केशव के घर जाकर शादी की बात किया जाए। जब लालाजी शादी की बात पंडित जी से करते है तो पंडित जी काफी गुस्सा करते हैं और कहते कि ब्राह्मण हूं, ब्राह्मणों में भी कुलीन ब्राह्मण, और ब्राह्मण कितना भी पतित क्यों ना हो जाए, लेकिन बनियों-वकालों की लड़की से शादी नहीं करते फिरते। प्रेमा अंत में आत्महत्या कर लेती है।