नहीं रहे बिहार के पूर्व राज्यपाल बूटा सिंह, राजनीतिक गलियारे में शोक की लहर, बिहार में एक दिन का राजकीय शोक
CENTRAL DESK : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व राज्यपाल सरदार बूटा सिंह का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार आज ही किया जाएगा। पंजाब के जालंधर जिले में जन्मे 86 वर्षीय बूटा सिंह को दलितों का मसीहा कहा जाता था। सरदार बूटा सिंह 8 बार लोकसभा के सांसद रहे और वे नेहरू गांधी परिवार के भरोसेमंद व्यक्ति थे। सरदार बूटा सिंह के निधन पर राजनीतिक गलियारे में शोक की लहर दौड़ गई है। पीएम मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत अन्य हस्तियों ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। सीएम नीतीश ने सरदार बूटा सिंह के सम्मान में बिहार एक दिन का राजकीय शोक की घोषणा की है।
पीएम बोले, गरीबों और दलितों के बुलंद आवाज थे
बूटा सिंह के निधन पर पीएम मोदी ने दु:ख व्यक्त करते हुए ट्विट किया है कि वे एक अनुभवी प्रशासक के साथ गरीबों और दलितों के बुलंद आवाज थे। मैं उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।
निष्टावान नेता और सच्चा जनसेवक खो दिया: राहुल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि सरदार बूटा सिंह जी के निधन से देश ने एक निष्टावान नेता और सच्चा जनसेवक खो दिया है। उन्होंने अपना जीवन देश की जनता के लिए समर्पित कर दिया। जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। इस मुश्किल समय में उनके परिवारजनों को मेरी संवेदनाएं हैं।
बिहार के पूर्व राज्यपाल एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सरदार बूटा सिंह जी का निधन दुखद। देश ने एक वरिष्ठ नेता को खो दिया है। ईश्वर उनकी आत्मा को चिर शांति प्रदान करे।https://t.co/I8AVKEP3qg
— Nitish Kumar (@NitishKumar) January 2, 2021
बिहार में एक दिन का राजकीय शोक की घोषणा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के पूर्व राज्यपाल एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री सरदार बूटा सिंह के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है। अपने शोक-संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि स्व. सरदार बूटा सिंह के रूप में देश ने एक वरिष्ठ नेता को खो दिया है। बूटा सिंह ने बिहार के राज्यपाल एवं केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया था। वे गरीबों के उत्थान के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे। उनके निधन से राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में अपूरणीय क्षति हुयी है। स्व. सरदार बूटा सिंह के सम्मान में बिहार सरकार ने एक दिन 02 जनवरी को राजकीय शोक घोषित किया है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शान्ति तथा उनके परिजनों को दु:ख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
बिहार के पूर्व राज्यपाल एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सरदार बूटा सिंह जी के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। वे कुशल प्रशासक थे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें व परिजनों को इस दुख को सहने की शक्ति दें।
— Ashwini Kr. Choubey (@AshwiniKChoubey) January 2, 2021
चौबे बोले, बूटा सिंह के असमय मृत्यु से दलित समाज में रिक्ता आ गई
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार के पूर्व राज्यपाल सरदार बूटा सिंह के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है। श्री चौबे ने अपने शोक संदेश में कहा कि वे कुशल प्रशासक थे, जिसको उन्होंने केंद्रीय मंत्री परिषद में अनेक विभागों के मंत्री रहते हुए और बिहार के राज्यपाल रहते हुए साबित किया था। दलित राजनीति को हमेशा राष्ट्रीय राजनीति से जोड़कर रखने में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। बूटा सिंह के रूप में हमने दलित समाज के एक बड़े नेता को खो दिया है, जिसकी कमी लंबे समय तक महसूस की जाएगी। रामविलास पासवान के बाद बूटा सिंह के असमय जाने से दलित राजनीति में एक रिश्ता आ गई है।
जब बूटा सिंह ने भेजा था इस्तीफे का प्रस्ताव
बताते चलें सरदार बूटा सिंह राजीव गांधी की सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री और कृषि मंत्री भी रह चुके थे। यही नहीं उन्होंने देश के रेल, खेल, खनन और संचार मंत्रालयों का भी जिम्मा संभाला था। इसके अलावा बूटा सिंह बिहार के राज्यपाल के पद पर भी रहे। बिहार के राज्यपाल के रूप में 2005 में बिहार विधानसभा के विघटन की सिफारिश करने के सिंह के फैसले की भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने तीखी आलोचना की थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि सिंह ने जल्दबाजी में काम किया और संघीय मंत्रिमंडल को गुमराह किया क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि एक विशेष पार्टी सरकार बनाने का दावा करे, सत्ता में आने के लिए। सिंह ने हालांकि दावा किया कि पार्टी सरकार बनाने के लिए समर्थन हासिल करने के लिए अनुचित साधनों का सहारा ले रही थी। 26 जनवरी 2006 को सिंह ने अब्दुल कलाम को अपने पद से इस्तीफा देने का प्रस्ताव भेज दिया। अगले दिन उन्होंने पद छोड़ दिया।
वह 2007 से 2010 तक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे थे। राजीव गांधी के अलावा बूटा सिंह इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की कैबिनेट में भी रह चुके थे। सरदार बूटा सिंह कांग्रेस में आने से पहले अकाली दल में थे। 1960 में बूटा सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वे पहली बार 1962 में लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। 1977 में कांग्रेस की हुई बुरी हार के बाद जब पार्टी टूट गयी थी तब बूटा सिंह ने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव का पदभार संभाला था। कहा जाता है कि 1980 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की बड़ी जीत के पीछे सरदार बूटा सिंह की कड़ी मेहनत ही थी। बूटा सिंह के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा दो बेटे और एक बेटी हैं।