कई दुर्लभ संयोगों के बीच 25 मार्च से वासंतिक नवरात्र, चैत्र नवरात्र पर बना दुर्लभ संयोग
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाले वासंतिक नवरात्र का समापन रामनवमी के दिन होगा। चैत्र नवरात्रि में मां भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाएगी और आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए श्रद्धालु विशिष्ट अनुष्ठान भी करेंगे। इस अनुष्ठान में देवी के नौ रूपों की आराधना की जाएगी। रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने चैत्र नवरात्र में देवी दुर्गा की उपासना करने के बाद रावण का वध करके विजय हासिल किए।
माता के आगमन से सिद्धि व विदाई से अति वृष्टि के योग
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पं. राकेश झा ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 25 मार्च दिन बुधवार को वासंतिक नवरात्र रेवती नक्षत्र एवं ब्रह्म योग में आरंभ होकर 03 अप्रैल दिन शुक्रवार को विजया दशमी के साथ संपन्न होगा। इस नवरात्र में माता अपनों भक्तो को दर्शन देने के लिए नाव पर आ रही है। माता के इस आगमन से श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही माता की विदाई गज यानि हाथी पर हो पर होगी क हाथी पर माता के गमन से अतिवृष्टि के योग बनते हैं। इससे ये प्रतीत हो रहा है कि सूबे में आगामी साल में खूब बारिश होगी। भक्त इस पूरे नवरात्र माता की कृपा पाने के लिए दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, बीज मंत्र का जाप, भगवती पुराण आदि का पाठ करेंगे।
चैत्र नवरात्र पर बना दुर्लभ संयोग
ज्योतिष झा के अनुसार इस बार चैत्र नवरात्रि 25 मार्च से शुरू होकर 02 अप्रैल तक पूरे 9 दिनों की रहेगी। इस बार चैत्र नवरात्रि पर कई शुभ योग भी बन रहा है। इस बार चैत्र नवरात्रि में चार सर्वार्थ सिद्धि योग, पांच रवियोग, एक द्विपुष्कर योग, एक गुरु-पुष्य योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ऐसे शुभ संयोग में नवरात्रि पर देवी उपासना करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। यह नवरात्रि धन और धर्म की वृद्धि के लिए खास होगी।
कलश पूजा से मिलेगी सुख-समृद्धि का वरदान
पंडित झा ने शास्त्रों का हवाला देते हुए बताया कि चैत्र नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापन का महत्व अति शुभ फलदायक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है, इसीलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है। नवरात्रि में कलश स्थापना का खास महत्व होता है। इसलिए इसकी स्थापना सही और उचित मुहूर्त में ही करनी चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है और परिवार में खुशियां बनी रहती हैं।
कन्या पूजन से मिलेगा मनोकामना पूर्ति का वरदान
ज्योतिषी पंडित राकेश झा शास्त्री ने भगवती पुराण के हवाले से बताया कि चैत्र नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। वासंतिक नवरात्र में छोटी कन्याओं में माता का स्वरूप बताया जाता है। तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। छल और कपट से दूर ये कन्यायें पवित्र बताई जाती हैं और कहा जाता है कि जब नवरात्रों में माता पृथ्वी लोक पर आती हैं तो सबसे पहले कन्याओं में ही विराजित होती है। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं।
कन्या में होती है देवी का स्वरूप
पंडित झा ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन कन्याओं की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में दो साल की कन्या कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छ: साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शांभवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा मानी जाती हैं।
कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
तिथि व सूर्योदय के अनुसार: प्रात: काल 05:57 बजे से दोपहर 04:02 बजे तक
गुली काल मुहूर्त: सुबह 10:24 बजे से 11:56 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11 :31 बजे से 12 :20 बजे तक
अपनी राशि के अनुसार करें मां की आराधना
मेष : रक्त चंदन, लाल पुष्प और सफेद मिष्ठान्न अर्पण करें।
वृष : पंचमेवा, सुपारी, सफेद चंदन, पुष्प चढ़ाएं।
मिथुन : केला, पुष्प, धूप से पूजा करें।
कर्क : बताशा, चावल, दही का अर्पण करें।
सिंह : तांबे के पात्र में रोली, चंदन, केसर, कर्पूर के साथ आरती करें।
कन्या : फल, पान पत्ता, गंगाजल मां को अर्पित करें।
तुला : दूध, चावल, चुनरी चढ़ाएं और घी के दीपक से आरती करें।
वृश्चिक : लाल फूल, गुड़, चावल और चंदन के साथ पूजा करें।
धनु : हल्दी, केसर, तिल का तेल, पीत पुष्प अर्पित करें।
मकर : सरसों तेल का दीया, पुष्प, चावल, कुमकुम और हलवा मां को अर्पण करें।
कुंभ : पुष्प, कुमकुम, तेल का दीपक और फल अर्पित करें।
मीन : हल्दी, चावल, पीले फूल और केले के साथ पूजन करें।